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________________ [ ५९ ] है। ग्रंथ के लेखक दिगम्बर परम्परा के मूलसंघ के वासवचन्द्र के शिष्य देवचन्द्र हैं । डा. नेमिचन्द्र शास्त्री ने इस ग्रन्थ को १२ वीं शताब्दी ई० सन् के आसपास माना है। . (८) पाश्र्वनाथचरित्र : माणिक्यचन्द्रसूरि-श्वेताम्बर राजगच्छीय माणिक्यचन्द्रसूरि ने वि. सं. १२७६ में इस ग्रन्थ की रचना की है। ग्रन्थ में १० सर्ग हैं । यह ग्रन्थ ६७७० श्लोक परिमाण है। इसमें भी पार्श्व के पूर्वभवों के साथ उनके जन्म, दीक्षा, कैवल्य एवं निर्वाण का विस्तृत विवरण उपलब्ध है। यह ग्रन्थ अभी तक अप्रकाशित है। इसकी ताडपत्रीय प्रति शान्तिनाथ जैन ग्रन्थ भण्डार, खंभात में सुरक्षित है। (९) पार्श्वनाथचरित्र : विनयचंद्र-संस्कृत भाषा में निबद्ध यह कृति ६ सर्गों में विभक्त है तथा ४६८५ श्लोक प्रमाण है। यह कृति अभी तक अप्रकाशित ही है। इसकी कथावस्तु परम्परागत ही है । इस ग्रंथ के रचनाकार चन्द्रगच्छीय मानतुंगसूरि के प्रशिष्य एवं रविप्रभसूरि के शिष्य विनयचन्द्रसूरि हैं। ई. सन् १२२६-८८ के मध्य इस ग्रन्थ का रचनाकाल माना जाता है। (१०) पार्श्वनाथचरित्र : सर्वानन्दसूरि-संस्कृत भाषा में निबद्ध ग्रंथ में पाँच सर्ग हैं । यह ग्रंथ अप्रकाशित है। इसकी ताडपत्रीय प्रति संघवीपाड़ा ग्रन्थ भंडार पाटन, में सुरक्षित है। यह अत्यन्त जीर्ण है और इसमें कुल ३४५ पृष्ठ हैं जिसमें प्रारम्भ के १५६ पृष्ठ लुप्त हैं। ग्रन्थ का रचनाकाल ई. सन् १२३४ माना गया हैं। इसके रचयिता श्वे० परम्परा के शालिभद्रसूरि के प्रशिष्य एवं गुणभद्रसूरि के शिष्य सुधर्मागच्छीय सर्वानन्दसूरि हैं। (११) पार्श्वनाथचरित्र : भावदेवसूरि-संस्कृत भाषा में निबद्ध इस कृति में ८ सर्ग और लगभग ६ हजार श्लोक हैं । इस ग्रन्थ के रचनाकार चन्द्रकुल के खंडिलगच्छ के आचार्य भावदेवसूरि हैं। ग्रन्थ का रचनाकाल वि० सं० १४१२ ( ई० सन् १३५५ है)। (१२) पार्श्वनाथपुराण : सकलकोति-संस्कृत भाषा में निबद्ध इस कृति में २३ सर्ग हैं । इस ग्रन्थ के रचनाकार दिगम्बर परम्परा के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002104
Book TitleArhat Parshva aur Unki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Mythology, & Literature
File Size4 MB
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