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इसके रचयिता दिगम्बर जैन परम्परा के नन्दिसंघ के श्रीपालदेव के प्रशिष्य तथा मतिसागर के शिष्य वादिराजसूरि हैं । इस ग्रंथ का प्रकाशन माणिकचन्द्र जैन दिगम्बर ग्रंथमाला, बम्बई द्वारा वि. सं. १९७३ में हुआ है। इस ग्रंथ पर अनेक व्याख्यायें भी लिखी गई हैं ।
(३) पासनाहचरिउ : देवदत्त - डा. देवेन्द्र कुमार शास्त्री ने अपभ्रंश के चरितकाव्यों में देवदत्त के पासनाहचरिउ का उल्लेख किया है । वर्तमान में यह कृति उपलब्ध नहीं होती है । जम्बूस्वामीचरिउ के रचयिता महाकवि वीर ने अपने पिता का नाम देवदत्त उल्लिखित किया है । यदि पार्श्वनाहचरिउ के रचयिता यही देवदत्त हैं तो इस ग्रंथ का रचनाकाल ईसा की दसवीं शताब्दी का उत्तरार्ध माना जायेगा । कृति अनुपलब्ध होने से उसके सम्बन्ध में अधिक कुछ नहीं कहा जा सकता है ।
(४) पासनाहचरिउ : पद्मकीर्ति - अपभ्रंश भाषा में निबद्ध इस कृति के रचयिता दिगम्वर आचार्य जिनसेन (द्वितीय) के शिष्य पद्मकीर्ति हैं । ई. सन् १०७७ में इस ग्रन्थ की रचना हुई है । इसमें पार्क के पूर्व और वर्तमान भव का सविस्तार विवेचन है । प्राकृत टेक्स्ट सोसाइटी ने सन् १९६५ में इस ग्रन्थ को प्रकाशित किया ।
(५) सिरिपासनाहचरियं देवभद्र-श्वेताम्बर चन्द्रगच्छीय अभयदेवसूरि के पट्टधर प्रसन्नचन्द्रसूरि के शिष्य देवभद्रसूरि द्वारा ई. सन् ११११ (वि. सं. ११६८ ) में इस ग्रंथ की रचना की गयी है प्राकृत भाषा में लिखित इस ग्रन्थ का प्रकाशन सर्व प्रथम मणिविजयगणिवर ग्रन्थमाला द्वारा ई. सन् १९४५ में हुआ था । इसका एक गुजराती अनुवाद भी आत्मानन्द सभा, भावनगर से प्रकाशित हुआ है ।
(६) पासनाहचरिउ : विबुधश्रीधर - यह कृति भी अपभ्रंश भाषा में लिखित है । १२ संधियों में विभक्त यह ग्रन्थ १२०० श्लोक प्रमाण है । ग्रंथ का रचनाकाल ई. सन् ११३२ सुनिश्चित है । इसके रचयिता विबुधश्रीधर दिगम्बर परम्परा से सम्बन्धित थे ।
(७) पासनाहचरिउ : देवचन्द्र - अपभ्रंशभाषा में लिखित इस ग्रंथ में ११ संधियां और १०२ कर्बट हैं । इसकी कथावस्तु परम्परागत ही
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