SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ६१ ] विजयसिंह के शिष्य हेम विजयगणि हैं। ग्रंथ का रचनाकाल ई० सन १५७५ है। (१८) पार्श्वपुराण : वादिचंद्र-१५००० श्लोक प्रमाण यह विशाल ग्रन्थ पौराणिक शैली में लिखा गया हैं। इस ग्रन्थ के रचयिता दिगम्बर परम्परा के भट्टारक ज्ञानभूषण के प्रशिष्य एवं भट्टारक प्रभाचन्द्र के शिष्य वादिचन्द्र हैं। ई० सन् १६८३ में यह ग्रन्थ लिखा गया। इस अप्रकाशित ग्रन्थ की एक प्रति इटावा के सरस्वती भण्डार में है । (१९) पार्श्वनाथचरितः उदयवीरगणि-यह ग्रन्थ ८ सर्गों में विभक्त एवं संस्कृत भाषा में निबद्ध है । यह हेमचन्द्र सूरि के त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित की परम्परानुसार ही लिखा गया है । ग्रन्थ के रचनाकार तपगच्छीय हेमसूरि के प्रशिष्य और संघबीर के शिष्य उदयवीरगणि हैं। ग्रंथ का रचनाकाल वि० सं० १६५४, ई० सन् १५९७ माना जाता है। (२०) पाश्र्वपुराण : चन्द्रकीति- यह ग्रंथ १५ सर्गों में विभक्त एवं २७१० श्लोक प्रमाण है। वि० सं० १६५४ ई० सन् १५९७ में भट्टारक श्रीभूषण के शिष्य चन्द्र कीर्ति ने इस ग्रंथ की रचना की । ये दिगम्बर पम्परा के काष्ठासंघ के थे । ग्रंथ की प्रशस्ति में इन्होंने अपनी विस्तृत गुरु परम्परा की चर्चा की है । डा० जोहरापुरकर ने चन्द्रकीर्ति का.समय वि० सं० १६५४-१६८१ अर्थात् ई० सन् १५९७-१६२४ ई० माना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002104
Book TitleArhat Parshva aur Unki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Mythology, & Literature
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy