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________________ [ १८ ] पुत्री प्रभावती के साथ उनके विवाह संबंधी प्रस्ताव-चर्चा प्रमुख रूप से उपलब्ध होती है। किन्तु जैसा कि हमने देखा ये सब विवरण बागम साहित्य में और नियुक्तियों में कहीं भी उपलब्ध नहीं होते हैं। श्वेताम्बर परंपरा में पार्श्व से संबंधित उपयुक्त सभी कथानक बिकसित रूप से सर्वप्रथम शीलांक के चउपन्नमहापुरिएचरियं में उपलब्ध होते हैं। यह ग्रन्थ लगभग ईसा की नौवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में लिखा गया है। इसके बाद के सभी टीकाकारों और ग्रन्थकारों ने इन घटनाओं का उल्लेख किया है । दिगम्बर परंपरा में पार्श्वनाथ के कथानक संबंधी विवरण का प्राचीनतम आधार यतिवृषभ कृत तिलोयपण्णत्ति है, किन्तु उसमें भी श्वेताम्बर आगम साहित्य के बनुरूप ही तीर्थंकरों के जन्म स्थान, पंच कल्याणक उनके नक्षत्र, मातासिता आदि संबंधी उल्लेख मात्र मिलते हैं । पान के संबंध में विस्तृत कथानक का इसमें भी अभाव है। दिगम्बर परंपरा में पाओं का विस्तृत कथानक सर्वप्रथम जिनसेन के पाश्र्वाभ्युह्य एवं गुणभद्र के उत्तरपुराण में उपलब्ध होता है। 70 ग्रन्थ भी ईसा की ९वीं शताब्दी में लिखे गये है। अतः श्वेताम्बर और दिगम्बर दोनों ही परंपराओं में पान से संबंधित विस्तृत कथानक हमें नवीं शताब्दी से पूर्व उपलब्ध नहीं होते हैं । परवर्ती श्वेताम्बर और दिगम्बर परंपरा में पार्ननाथ पर जो भी चरित्र ग्रन्थ लिखे गये हैं उन सबमें इन्हीं कथानकों का विकास देखा जाता है। वे सभी भी पार्श्व के सम्बन्ध में उनके पूर्व भव, कमठ सम्बन्धी घटना तथा प्रभावती की और प्रसेनजित के सज्य की यवनराज के आक्रमण से सुरक्षा आदि के उल्लेख से युक्त हैं । 'यवनराज' शब्द स्वयं इस कथानक को परवर्ती काल का सिद्ध करता है। यहाँ यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से उत्पन्न होता है कि पार्श्व के बीवन वृत्त के संबंध में विस्तृत विवरण और कथानक जिनका उल्लेख श्वेताम्बर परंपरा में 'चउप्पनमहापुरुषचरियं' में आचार्य शीलांक और दिगम्बर परंपरा के उत्तरपुराण में गुणभद्र करते हैं, वे क्या उनकी ही कल्पना की सृष्टि है या उसके पूर्व ये कथानक कहीं अन्यत्र वर्णित थे। प्रामाणिक साक्ष्य के अभाव में आज इस संबंध में निर्णयात्मक रूप से कुछ भी कह पाना कठिन होगा, किन्तु इतना अवश्य कहा जा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002104
Book TitleArhat Parshva aur Unki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Mythology, & Literature
File Size4 MB
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