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________________ [ १९ ] सकता है कि अनुश्रुति के रूप में ये कथानक इनके पूर्व भी प्रचलित रहे होंगे। कल्पसूत्र भी कम से कम इतना उल्लेख अवश्य करता है कि पार्श्वनाथ ने अपने साधनाकाल में देव, मनुष्य और तिर्यञ्च संबंधित अनेक उपसर्गों को सहन किया। सम्भवतः इसी आधार पर आगे कमठ संबंधी घटनाक्रम का विवरण लिखा गया होगा। पार्श्वनाथ और कमठ के इसी कथानक का विकास पानाथ के पूर्व भवों संबंधी विवरणों में भी देखा जाता है। पार्न के जीवन वृत्त में कमठ संबंधी घटनाक्रम को स्थान देने के दो उद्देश्य हैं, प्रतीत होते प्रथम तो इस घटनाक्रम द्वारा श्रमण परंपरा में विकसित अविवेकपूर्ण देह-दण्डन की आलोचना कर विवेकपूर्ण ज्ञानमार्गी साधना की प्रतिष्ठा करना और दूसरा कर्मसिद्धांत की अनिवार्यता को सिद्ध करना । प्रभावती संबंधी प्रसंग परवर्ती सभी श्वेताम्बर और कुछ दिगम्बर ग्रन्थों में उपलब्ध है। मात्र अन्तर यह है कि जहाँ श्वेताम्बर परंपरा के कथा लेखक प्रभावती की यवनराज से सुरक्षा करने के साथ-साथ बाद में प्रसेनजित और अश्वसेन के आग्रह पर उसके साथ पार्श्व के विवाह का भी उल्लेख कर देते हैं; वहाँ दिगम्बर परंपरा के वे ग्रन्थकार जिन्होंने इस प्रसंग को चित्रित किया है, पार्श्व की नैराग्य भावना को प्रदर्शित कर विवाह के लिए उनके स्पष्ट निषेध को चित्रित करते हैं। इस घटनाक्रम में जो यवनराज का उल्लेख है उससे ऐसा लगता है कि यह कथानक यवनों के भारत प्रवेश के पश्चात् ही कभी विकसित हुआ होगा। पार्श्व के जीवन वृत्त संबंधी घटनाक्रमों के प्राचीन उल्लेखों के अभाव से हमें पार्श्व के अस्तित्व और उनकी ऐतिहासिकता के संबंध में कोई प्रश्न चिह्न नहीं खड़ा करना चाहिए, क्योंकि उनके एवं उनकी परंपरा के अस्तित्व तथा उनके उपदेशों से संबंधित विवरण ऋषिभाषित, आचारांग द्वितीय-श्रु तस्कन्ध, सूत्रकृतांग और भगवती जैसे प्राचीन स्तर के आगम ग्रन्थों में स्पष्ट रूप से उपलब्ध हैं। पार्श्वनाथ का अवदान भारतीय संस्कृति की श्रमण धारा मूलतः त्याग और तप को प्रधानता देती है और इसी कारण ही इसकी लोक में प्रतिष्ठा रही है। यह सुनिश्चित है कि पार्श्वनाथ इसी श्रमण परम्परा के प्रवक्ता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002104
Book TitleArhat Parshva aur Unki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Mythology, & Literature
File Size4 MB
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