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[ १७ ] रहा होगा। पार्श्व और महावीर के काल में बंगाल अनार्य क्षेत्र माना जाता था। नियुक्ति का अनार्य भूमि से तात्पर्य उसी क्षेत्र से है। पार्श्व के कथानक का ऐतिहासिक विकासक्रम
जैसा कि हम पूर्व में निर्देश कर चुके हैं, पार्श्वनाथ के जीवन वृत्त के संबंध में प्राचीन उल्लेख अल्पतम ही हैं। किन्तु इसके विपरीत पार्श्वनाथ के उपदेश, उनकी धार्मिक और दार्शनिक मान्यताएँ, पार्वापत्य श्रमणों का स्वयं महावीर से अथवा महावीर के श्रमणों से मिलने एवं तत्त्वचर्चा करने आदि के उल्लेख प्राचीन आगम साहित्य में पर्याप्त रूप से उपलब्ध है। पान के जीवन वृत्त के संबन्ध में समवायांग, कल्पसूत्र एवं आवश्यकनियुक्ति में उनका गंश, माता-पिता के नाम, गर्भावतरण, जन्म, दीक्षा, कैवल्य और निर्वाण की तिथियाँ एवं नक्षत्र, गणधरों के नाम तथा श्रमण-श्रमणी एवं उपासक-उपासिकाओं की संख्या संबंधी उल्लेख मिलते हैं। 7 पार्श्वनाथ के जीवनवृत्त की प्रमुख घटनाओं के संबंध में ये ग्रन्थ लगभग मौन ही हैं । साथ ही कल्पसूत्र, समवायांग, आवश्यकनियुक्ति एवं तिलोयपण्णत्ति के सब विवरण २४ तीर्थंकरों की मान्यता के स्थिर होने के पश्चात् अर्थात् लगभग तीसरी-चौथीं शताब्दी के बाद के ही लगते हैं। आगम साहित्य में पार्श्व संबंधी विवरणों में प्राचीन स्तर के विवरण तो मात्र पापित्यों के महावीर एवं महावीर के श्रमणों से मिलन को तथा पान की तात्विक तथा आचार संबंधी मान्यताओं को सूचित करते हैं । यहाँ हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि यह स्थिति केवल पार्न के संबंध में ही नहीं है, अपितु सभी भारतीय चिन्तकों और साधकों के संबंध में भी है।
प्राचीन युग में केवल उपदेश भाग को ही महत्ता दी जाती थी और इसलिए उसी को सुरक्षित रखने का प्रयत्न किया जाता था। जैन परंपरा में पान के संबंध में विकसित कथानकों में उनके एनं कमठ के पूर्व भवों तथा दोनों के पारस्परिक सम्बन्धों का विवरण, इस भव में घटित कमठ तापस सम्बन्धी घटना, पान का यवन राज को विजित करने के लिए प्रस्थान करना तथा प्रसेनजित की
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