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________________ [ १६ ] में जहाँ पार्श्वनाथ अपने अनुचरों के द्वारा अग्नि से लकड़ी को निकलवाकर चिरवाते हैं, वहां उत्तरपुराण और पार्श्वनाथ चरित्र में स्वयं कमठ उस लकड़ी को चीरता है । चउपन्नमहापुरिसचरियं, सिरिपासनाहचरियं, त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित्र और पद्मचरित्र में केवल नाग का उल्लेख है, नागिन का नहीं । जबकि उत्तर पुराण में सर्प युगल की बात कही है और माना है कि नाग मरकर धरणेन्द्र और नागिन मरकर धरणेन्द्र की स्त्री पद्मावती बनी है। यद्यपि श्वेताम्बर आगम स्थानांग, भगवती और ज्ञातासूत्र में धरणेन्द्र की जिन छह अग्रमहिषियों का उल्लेख है उसमें पद्मावती का कहीं उल्लेख नहीं है.63 यद्यपि ज्ञाताधर्म कथा के अनुसार धरणेन्द्र की ये अग्रम हिषियाँ पार्श्व के शासन में बनी हैं किन्तु उसके साथ उपयुक्त कथानक का कहीं भी उल्लेख नहीं हुआ है। इस कथानक में एक विसंगति यह भी है कि पार्श्व के यक्ष के रूप में पार्श्व यक्ष और यक्षिणी के रूप में पद्मावती का उल्लेख मिलता है। धरणेन्द्र को भवनपति देवों का इन्द्र बताया गया है जबकि पद्मावती को यक्षिणी बताया गया है। जैन मान्यता के अनुसार यक्ष व्यन्तर देवों की एक जाति है। अतः पद्मावती को धरणेन्द्र की अग्रमहिषी मानना आगमिक दृष्टि से युक्ति संगत नहीं है । 84 फिर भी पार्श्वचरित्रों के लेखक धरणेन्द्र और पद्मावती के बीच सम्बन्ध जोड़ देते हैं। पार्श्व का विहार क्षेत्र ___ आवश्यक नियुक्ति की सूचना के अनुसार जहाँ अन्य तीर्थकरों में केवल मगध, राजगृह, आदि आर्य क्षेत्रों में विहार किया था वहाँ ऋषभ, नेमि, पान और महावीर ने अनार्य क्षेत्रों में भी विहार किया था । 65 इससे ऐसा लगता है कि अन्य तीर्थंकरों की अपेक्षा ऋषभ, नेमि, पान और महावीर के विहार क्षेत्र अधिक व्यापक थे। यद्यपि परवर्ती पार्श्वचरित्रों के लेखकों ने पार्श्व के विहार क्षेत्रों में कुरु, कौशल, काशी, सुम्ह, अवन्ती, पुण्ड, मालव, अंग, बंग, कलिंग, पांचाल, मगध, विदर्भ, भद्र, दशार्ण, सौराष्ट्र, कर्णाटक, कोंकड़, मेवाड़, लाट, द्राविड़, काश्मीर, कच्छ, शाक, पल्लव, वत्स, और आभीर देश का उल्लेख किया । 66 किन्तु मेरी दृष्टि में उनका विहार क्षेत्र वर्तमान उत्तर प्रदेश, विहार, पूर्वी मध्य प्रदेश, उड़ीसा और बंगाल तक सीमित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002104
Book TitleArhat Parshva aur Unki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Mythology, & Literature
File Size4 MB
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