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कन्नड जैन साहित्य का इतिहास
तथा प्रवाहपूर्ण है । सांगत्य काव्यों की अभिवृद्धि में शिशुमायण का महत्त्वपूर्ण स्थान है ।
शिशुमायण का त्रिपुरदहन २८२ सांगत्य पद्यों की एक लघुकाय कृति है । यह संस्कृत प्रबोधचन्द्रोदय नाटक की तरह एक लक्ष्य काव्य है । कवि ने शिवपुराण की प्रसिद्ध त्रिपुरदहन की कथा में परिवर्तन कर उसमें जिनेश्वर देव को जन्म-जरा-मरणरूपी त्रिपुरों का संहारकर्ता बतलाया है । त कवि ने मोहासुर को त्रिपुर का राजा; माया को उसकी रानी; मनुष्य, देव, तिथंच और नरक गतियों को चार पुत्र, क्रोध, लोभादि को मंत्री तथा नाना विध कर्मों को उसका परिवार निरूपित किया है । शिवपुराण की सभी घटनाओं को यहाँ पर सांकेतिक रूप दिया गया है । जिनेश्वरदेव के ललाट पर केवलज्ञानरूपी तीसरा नेत्र प्रकट होता है, जिसके द्वारा त्रिपुर ( मोहासुर ) सपरिवार पराजित कर दिया जाता है । परम दयालु जिनेश्वर देव ने मोहासुर को मारा नहीं, बल्कि हाथ-पैर बांधकर उसे अपने चरणों में झुकाया और स्वतन्त्र छोड़ दिया । इस प्रकार कवि ने इस काव्य में जिनेश्वरदेव को शिव से अधिक दयालु सिद्ध किया है ।
शिशुमायण का अंजनाचरिते ६ हजार पद्यों का एक वृहद् ग्रंथ है । इसमें आचार्य रविषेणविरचित संस्कृत पद्मचरित्र में वर्णित अंजना की कथा का ही विस्तार किया गया है । कवि के वर्णन में स्वाभाविकता है । कवि का दृष्टिकोण जनसाधारण को परितोष देना ही रहा है और इस कार्य में कवि शिशुमायण पूरी तरह सफल हुआ है ।
बोम्मरस
तेरकणां बिनिवासी बोम्मरस सनत्कुमारचरिते और जीवंधरसांगत्य नामक इन दो ग्रंथों के रचयिता हैं । इनका समय लगभग ई० सन् १४८५ है । कवि के पिता का नाम भी बोम्मरस ही था । सम्भवतः इनके पिता बोम्मरस भी विद्वान् थे । भामिनि षट्पदि के इस सनत्कुमारचरिते में ८७० पद्य हैं । इसमें हस्तिनापुर के युवराज सनत्कुमार की कथा वर्णित है । कवि का कथानिरूपण सुन्दर है, पद्यों का प्रवाह ठीक है और वर्णन में नवीनता है । मालूम होता है कि कवि बोम्मरस भोजनप्रिय था क्योंकि इनके काव्य में भक्ष्यभोज्य पदार्थों का वर्णन विशेष रूप से मिलता है ।
कवि के जीवंधर सांगत्य में करीब १४५० पद्य हैं । इसमें राजपुरी के महाराज सत्यंधर के सुपुत्र जीवंधर की कथा निरूपित है । कथा सरल एवं
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