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________________ षट्पदि और सांगत्ययुग जन-भोग्य है । वर्णन सुदर है। यद्यपि बोम्मरस को महाकवि नहीं कहा जा सकता फिर भी वे एक श्रेष्ठ कवि हैं। कवि कोटीश्वर ने भी लगभग ई० सन् १५०० में, भामिनि षट्पदि में एक जीवंधरचरिते लिखा है, किन्तु वह ग्रंथ अपूर्ण है। त मंगरस (द्वितीय) पहले मंगरस खगेन्द्रमणि दर्पण नामक वैद्यक ग्रंथ के रचयिता हैं। दूसरे मंगरस मंगराजनिघंटु के रचयिता हैं। तीसरे मंगरस जलनृपकाव्य, नेमिजिनेशसंगति, श्रीपालचरिते, प्रभंजनचरिते, सम्यक्त्वकोमुदि और सूपशास्त्र नामक ग्रंथों के रचयिता हैं। चेंगाल्व सचिवकुलोद्भव कल्लहल्लिका विजयभूपाल इनके पिता हैं। इनकी माता देविले और गुरु चिक्कप्रभेन्दु हैं। कवि को प्रभुराज, प्रभुकुल और रत्नदीप नामक उपाधियाँ प्राप्त थीं । कवि के पिता युद्धवीर मालूम होते हैं क्योंकि कवि ने अपने पिता को 'रणकभिनवविजयं' कहा है। मंगरस तृतीय १६वीं शताब्दी के पूर्वार्ध के कवि हैं। ____ मंगरस का जयनुपकाव्य परिवधिनी षट्पदि में, सूपशास्त्र वार्धकषट्पदि में, सम्यक्त्वकौमुदि उइंडषट्पदि में और शेषतानग्रंथ सांगत्य में हैं । जयनुपकाव्य में कुरुजांगण के राजकुमार जयनुप की कथा है । इसका मूल आधार आचार्य जिनसेनरचित संस्कृत कथा है। कथानायक प्रथम चकवर्ती भरत का सेनापति था। यह एक शृंगारिक काव्य है । मंगरस का पदबंध ललित एवं स्वभावोक्ति हृदयग्राही है। कवि की कल्पना नवीन एवं मनोहारिणी है। परिवधिनी षट्पदि में रचित इस काव्य में कविता मंगरस की मानों चेरी ही है। मंगरस का सूपशास्त्र ३५६ पद्यों एक पाकशास्त्र ग्रंथ है। इसका आधार पिष्टपाक, पानक, कलमान्नपाक, शाकपाक आदि संस्कृत ग्रंथ रहे हैं। सभी की चर्चा इस ग्रन्थ में हुई है। मंगरस कहते हैं कि यह पाकशास्त्र स्त्रियों के लिए अत्यंत प्रिय और उपयोगी है। कवि रसनेन्द्रियतुष्टि को ही लौकिक और पारलौकिक सुख मानता है । सम्यक्त्वकोमुदि ७९२ पद्यों का एक सुंदर काव्य है । इसमें वैश्य अर्हद्दास की स्त्रियों द्वारा कथा सुनाने तथा उन्हें सुनकर राजा उदितोदित को सम्यक्त्व एवं स्वर्ग प्राप्त होने की कथा वर्णित है। यह कथा पूर्व में गौतम गणधर ने मगधनरेश श्रेणिक को सुनायी थी। इस कथा में और भी कई उपकथाएँ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002100
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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