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कन्नड जैन साहित्य का इतिहास शामिल हैं। ये सब सुंदर कथाएँ जनपद कथाओं के वर्ग की हैं। इन कथाओं में नीति-उपदेश भरे पड़े हुए हैं । सभी कथाएं पठनीय हैं। ____ मंगरस का प्रभंजनचरिते अपूर्ण है। शेष दो ग्रंथ बृहदाकार हैं। इनमें एक है श्रीपालचरिते जिसमें पुण्डरिकिणी नगर के राजा गुणपाल के पुत्र श्रीपाल की कथा वर्णित है। उनके अन्य काव्यों की तरह इसमें भी नवीनता, मनोहरता और स्वाभाविकता है। कवि के अपूर्ण प्रभंजनचरिते में शुम्भदेश के जम्भापुर के राजा देवसेन के पुत्र प्रभंजन की कथा वर्णित है। यह काव्य भी सरल एवं सरस है।
नेमिजिनेशसंगति में २२वें तीर्थकर नेमिनाथ का पुण्यचरित्र निरूपित है। विद्वानों का मत है कि यह रचना कवि की प्रथम कृति है, क्योंकि इसकी घौली कवि के अन्य काव्यों की तरह प्रौढ़ नहीं है। फिर भी इसमें कवि हृदय मोजूद है और इसके युद्धवर्णन से ज्ञात होता है कि मंगरस क्षत्रिय था और युद्ध में उसने अवश्य भाग लिया होगा। इसके जयनृपकाव्य, सूपशास्त्र, सम्मक्त्वकौमुदि और नेमिजिनेशसंगति प्रकाशित हो चुके हैं। अभिनववादि-विद्यानंद __ इन्होंने 'काव्यसार' नामक एक संकलन ग्रंथ की रचना की है। नगर तालुकान्तर्गत होंबुज के एक शिलालेख में इनकी बड़ी प्रशंसा की गई है। प्रतिवादियों को जीतने में एवं उपन्यास में यह अद्वितीय कहा गया है। इसीलिए वादिविद्यानंद नाम से अभिहित किया गया होगा। इनका समय ई० सन् सोलहवीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध मालूम होता है।
इनके उपर्युक्त संकलन ग्रंथ में ११४० पद्य हैं। सम्भवतः इन्होंने अन्य ग्रंथों की रचना भी की होगी।
विद्यानंद को 'दशमल्यादि महाशास्त्र' नामक एक ग्रंथ मुझे उपलब्ध हुआ है। यह ग्रंथ प्राकृत, संस्कृत और कन्नड भाषा में लिखित है। इतिहास की दृष्टि से यह ग्रंथ महत्त्वपूर्ण है। इसका विस्तृत परिचय मैंने अन्यत्र एक लेख में दिया है। साल्व ___ इन्होंने अपने आश्रयदाता साल्वमल्ल और राजा साल्वदेव की प्रेरणा से भामिनी षट्पदि में 'भारत' नामक ग्रंथ की रचना की है। इस ग्रंथ के अतिरिक्त साल्व ने रसरत्नाकर और वैद्यसांगत्य नामक और दो ग्रंथों की रचना की है। विद्वानों की राय से 'शारदाविलास' नामक एक अन्य कृति भी इन्हीं
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