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________________ षट्पदि और सांगत्ययुग ८९ की है। कवि के पिता धर्मचन्द्र और गुरु श्रुतकीर्ति हैं । साल्व १६वीं शताब्दी के मध्य या उत्तर भाग में हुए होंगे। साल्व के 'भारत' को नेमीश्वरचरिते भी कहते हैं। अन्य जैन भारतों की तरह यहां भी हरिवंश-कुरुवंश की कथा दी गयी है। यह एक धार्मिक ग्रंथ है। कवि साल्व एक विद्वान् कवि हैं । इनका काव्य मध्यम वर्ग का है। कवि का रसरत्नाकर नामक एक अलंकारशास्त्रीय ग्रन्थ भी है। इसमें चार आश्वास हैं। साल्व ने इस कति की रचना में अमृतानन्दी, रुद्रभट्ट, हेमचन्द्र, नागवर्म आदि कवियों के ग्रंथों से सहायता ली है । इसमें संदेह नहीं है कि यह ग्रंथ विस्तार से लिखा गया है। यह बात कवि ने स्वयं कही है। यद्यपि कवि ने सभी नौ रसों का वर्णन किया है। तथापि उसे शृंगाररस अधिक प्रिय था। साल्व के 'शारदाविलास' में काव्य की जीवस्वरूप ध्वनि ही प्रतिपादित है। कन्नड में ध्वनि प्रतिपादक ग्रंथों में यह प्रथम रचना है। यह ग्रन्थ अभी तक पूर्ण रूप में उपलब्ध नहीं हुआ है। इसका केवल दूसरा आश्वास ही मिला है । साल्व का वैद्यसांगत्य एक सुन्दर वैद्यग्रंथ है। इस प्रकार कवि साल्व अपनी बहुमुखी प्रतिभा से कन्नड भाषासाहित्य की तुष्टि-पुष्टि के अवश्य हिस्सेदार हैं । दोडुय्य ____ इन्होंने चन्द्रदेवप्रभचरितं की रचना की है इनका निश्चित समय ज्ञात नहीं है । सम्भवतः ये १६वीं शताब्दी के मध्य भाग में हुए। इनके प्रथ का मूल आधार कविपरमेष्ठी और आचार्य गुणभद्र की कृतियां हैं। इसमें लग. भग ४५०० पद्य हैं । साहित्य का दृष्टि से यह ग्रंथ सामान्य स्तर का है । बाहुबलि ये शृंगेरिवासी वैश्यशिरोमणि सण्णण्ण के पुत्र थे । इनकी माता बोम्मलदेवी थीं। एक दिन राजा भैरवेन्द्र के आस्थान में भट्टारक ललितकीर्ति ने पुराण श्रवण कराते हुए भैरवेन्द्र को श्रीपंचमी की महिमा सुनायी । इस कथा को लिखने के लिए राजा ने बाहुबलि को आदेश दिया। ललितकीर्ति ने भी इसका समर्थन किया। उन दोनों की प्रेरणा से कवि ने नागपञ्चमी की महिमा को प्रकट करनेवाले नागकुमारचरिते की रचना की। बाहुबलि का समय ई० सन् १५६० है। कवि का नागकुमारचरिते एक सुन्दर कृति है । यह ३७०० पद्यों का एक वृहद् काव्यग्रंथ है। कवि को कविराजहंस और संगीतसुधाब्धिचन्द्रम् नामक उपाधियां प्राप्त थीं। गुणचंद्र गुणचंद्र एक लाक्षणिक कवि हैं। इनका समय करीब ई० सन् १६५० है । इन्होंने इन्दस्सार नामक एक संग्रहरूप छन्दोग्रंथ लिखा है । इसमें पांच Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002100
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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