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षट्पदि और सांगत्ययुग भास्कर
कवि भास्कर १५वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में हुए हैं। इन्होंने भामिनी षट्पदि में 'जीवन्धरचरिते' लिखा है। इस काव्य ग्रन्थ के आधार पर वे बसवांक नामक जैन ब्राह्मण के पुत्र मालूम होते हैं। भास्कर ने उक्त काव्य को पेनगोंडे के शान्तीश्वर जिनालय में शालिवाहन शक संवत् १३४५ ( ई० सन् १४२३ ) में रचा था । काव्य का कथाभाग मनोहर है । सन्निवेश रचना में कवि ने अपने कौशल को सुन्दर ढंग से अभिव्यक्त किया है । भास्कर की शैली सरल, ललित एवं नादमय है। कवि का कल्पनाचातुर्य हृदयग्राही है। महाकवि वादीभासित सूरि के क्षत्रचूड़ामणि काव्य का ही यह कन्नड रूपान्तर है। यह काव्य प्रकाशित हो गया है। कल्याणकीति
यह १५वीं शताब्दी के मध्य भाग में हुए मालूम होते हैं क्योंकि इन्होंने अपने 'ज्ञानचन्द्राभ्युदय' को ई० सन् १४३९ में रचा था। कवि कल्यागकीति ने ज्ञानचन्द्राभ्युदय, कामनकथे, अनुप्रेक्षे, जिनस्तुति और तत्त्वभेदाष्टक इन ग्रंथों की रचना की है। 'ज्ञानचन्द्राभ्युदय' नामक इस कथा ग्रन्थ में यह बताया गया है कि ज्ञानचन्द्र राजा ने तपस्या द्वारा किस प्रकार अपना आध्यात्मिक विकास किया। लगभग ९०० पद्यों का यह काव्य वाधिक भामिनि और परिवाधिनि षट्पदि नामक छन्दों में है।
दूसरी रचना जैनधर्म से सम्बन्धित कामनकथे है । यह सांगत्य छन्द में है। कवि ने इसे तुलु देश के शासक भैरवसुत पाण्डयराय की प्रेरणा से रचा था। इसमें लगभग ३३० पद्य हैं । इसकी शैली सरस है। कल्याणकीति के शेष तीन ग्रन्थ भी जैनधर्म से सम्बन्धित हैं। कवि का एक अन्य काव्य सिद्धराशि है, पर वह अभी तक उपलब्ध नहीं है। ज्ञानचन्द्राभ्युदय को छोड़ कर इनके शेष ग्रंथ अप्रकाशित हैं। रत्नाकर वर्णी ___रत्नाकर वर्णी के रत्नाकरसिद्ध, रत्नाकरअण्ण आदि कई नाम थे, किंतु कवि को रत्नाकरसिद्ध नाम ही विशेष प्रिय था। रत्नाकर ने अपने को कर्नाटकवासी, क्षत्रियवंशी एवं श्री मन्दरस्वामी का पुत्र बतलाया है तथा थारुकीर्ति को दीक्षागुरु और हंसनाथ को मोक्षगुरु कहा है। रत्नाकर ने १०
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