________________
चम्पूयुग
बाहुबलि और मधुर
१४वीं शताब्दी के पुराणरचयिताओं में बाहुबलि और मधुर को भी सम्मिलित किया जा सकता है। बाहुबलि का समय लगभग ई० सन् १३५२ और मधुर का समय ई० सन् १३८५ है। दोनों के काव्य की विषयवस्तु एक ही है और वह है १५वें तीर्थंकर धर्मनाथ का चरित्र । 'उभयभाषाकविचक्रवर्ती' उपाधिधारी बाहुबलि का ग्रंथ धर्मनाथपुराण एक प्रौढ ग्रन्थ है। इसमें १६ बाश्वास हैं। मधुर के ग्रंथ में संप्रति केवल चार ही आश्वास उपलब्ध हैं। मधुर ने अपनी बड़ी प्रशंसा की है। सम्भवतः यह विजयनगर के राजा हरिहर के आस्थान में कवि थे। इनके वर्णन में स्वाभाविकता है।
अभिनव विद्यानन्द और भट्टारक अकलंक ने अपनी-अपनी कृतियों में मधुर के पद्यों को लिया है। मधुर की एक गोम्मटस्तुति भी है। जैन चम्पू कवियों में मधुर अन्तिम कवि हैं । बाहुबलि और मधुर दोनों जैन परम्परा के कवि हैं । इनके काव्यों में भी जैन पुराणों की सामान्य विशेषताएं उपलब्ध होती हैं। मंगराज अथवा मंगरस
चौदहवीं शताब्दी के चम्पू रचयिताओं में 'खगेन्द्रमणि दर्पण' नामक वैद्यक ग्रंथ के रचयिता मंगराज ( ई० सन् १३६० ) एक विशिष्ट कवि हैं। इन्होंने अपने को होयसल देशान्तर्गत मुगुलिपुर का अधिप एवं पूज्यपाद का शिष्य बतलाया है। इनकी पत्नी का नाम कामलता था और इनके तीन संतान थी। ये सब बातें इनकी कृतियों से ज्ञात होती हैं । कवि ने विजयनगर के राजा हरिहर की प्रशंसा की है। अतः मंगराज उसका समकालीन था। इसे 'सु. ललितकविपिकवसंत', 'विभुवंशललाम' आदि कई उपाधियां प्राप्त थीं। मंगराज का कहना है कि जनता के निवेदन पर मैंने सर्वजनोपकारी इस वैद्यक ग्रन्थ की रचना की है। ___ इसमें केवल औषधियां ही नहीं हैं, अपितु मंत्र-यंत्र भी हैं। कवि का मत है कि 'औषधियों से आरोग्य, आरोग्य से देह, देह से ज्ञान, ज्ञान से मोक्ष प्राप्त होता है। इसीलिए मैं औषधशास्त्र को बतला रहा हूँ।' मंगराज ने स्थावर और जंगम दोनों प्रकार के विष को औषध बतलाया है। खगेन्द्रमणिदर्पण एक शास्त्रीय ग्रंथ है फिर भी इसमें काव्य के गुण उपस्थित हैं। इसकी रचना ललित और शैली भी सुन्दर है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org