________________
कन्नड जैन साहित्य का इतिहास पद्यों में हैं तथा वृत्ति गद्य में है और उदाहरण पूर्वकवियों के काव्यों से लिये गये हैं। व्याकरण के नियमों को समझाने के लिए कंद पद्य ही सरल होता है । इसके सभी उदाहरण बहुत सरस होने के कारण यह व्याकरण ग्रन्थ भी काव्य की अनुभूति देता है । कवि की प्रामाणिकता प्रशंसनीय है, उसके सभी कथ्य सप्रमाण हैं।
पुरानी भाषा में व्यवहृत अशुद्ध प्रयोगों को दूर कर, भाषा को परिशुद्ध बनाना ही केशिराज का प्रधान लक्ष्य रहा । कन्नड धातुपाठ के निर्माण का श्रेय केशिराज को ही है। इनके पिता मल्लिकार्जुन स्वयं विद्वान् और कवि थे । इनकी माता सुमनोबाण की सुपुत्री थीं तथा मातुल प्रसिद्ध महाकवि जन्न थे। सुमनोबाण भी स्वयं कवि थीं । अतः बाल्यकाल से ही उसे साहित्यिक परिवेश उपलब्ध रहा।
कवि मल्ल ने अपने 'मन्मथविजय' में इसको लोक का एकमात्र शब्दज्ञ कहा है। उसका यह कथन कम से कम कन्नड भाषा की दृष्टि से तो सर्वथा सत्य है। निर्दोष पांडित्य को प्राप्त करने के लिए 'शब्दमणिदर्पण' का अभ्यास आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है ।
नागराज
इनका समय लगभग ई० सन् १३३१ है । कवि के पिता विवेक विठ्ठलदेव और माता भागीरथी थीं। नागराज का सहोदर तिप्परस एवं गुरु अनन्तवीर्य केवली थे। भारतीभालनेत्र और सरस्वतीमुखतिलक इनकी उपाधियाँ थीं। इनकी रचना 'पुण्याश्रवकथा' है। कवि का कहना है कि पूज्य गुरु की आज्ञा से सगर के निवासियों के लिए मैंने इस पुण्याश्रवकथा की रचना की है। इस रचना में देवपूजा, गुरूपास्ति, स्वाध्याय, संयम, दान और तप इन सबका वर्णन करके इनके आचरण के द्वारा स्वर्गापवर्ग को प्राप्त करनेवाले पुराणपुरुषों की कथाएँ वर्णित हैं। ___ यद्यपि नागराज ने नयसेन की तरह परधर्म का सीधा उपहास नहीं किया है, फिर भी उन्होंने जैन धर्म की श्रेष्ठता को स्पष्ट रूप से प्रतिपादित किया , है । वड्डाराधना की कतिपय कथाएं इनके पुण्याश्रव में भी मिलती हैं । नागराज कथानिरूपण में कुशल हैं। काव्य देशीय शैली में लिखे गये हैं जो सरल एवं ललित हैं। इसके साथ ही साथ वर्णन में स्वाभाविकता भी है । 'पुण्याश्रवकथा' सामान्य जनता के लिए उपयोगी कथाग्रंथ है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org