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चम्पूयुग
मल्लिकार्जुन एवं केशिराज
१३वीं शताब्दी के मध्य भाग में हुए इन दोनों पिता-पुत्र का कन्नड साहित्य के इतिहास में एक विशिष्ट स्थान है । ये दोनों ही कवि थे । परन्तु खेद की बात है कि अभी तक इनका कोई भी स्वरचित काव्य ग्रन्थ उपलब्ध नहीं हुआ है। मल्लिकार्जुन मल्ल और मल्लप्प नाम से भी प्रसिद्ध हैं । मल्लिकाजुन ने अपने से पूर्व के कन्नड साहित्य से 'सूक्तिसुधार्णव' नामक एक पद्य संकलन अवश्य तैयार किया है । इसमें १९ आश्वास हैं । इस संकलन ग्रंथ के पूर्वपीठिका नामक प्रथम आश्वास में इनके स्वरचित अनेक पद्य उपलब्ध होते हैं, मात्र इतना ही नहीं, इस आश्वास में इनके द्वारा रचित बहुत से ऐसे पद्य भी मिलते हैं जो अभिलेखों में उत्कीर्ण हैं |
केशिराज
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इन्होंने अपने ग्रन्थ शब्दमणिदर्पण में चोलपालचरित, सुभद्राहरण, प्रबोध चन्द्र और किरात नामक अपनी स्वरचित कृतियों का उल्लेख किया है । परंतु अभी तक इनमें से एक भी ग्रन्थ प्राप्त नहीं हो सका है । विद्वानों की राय से प्रबोधचन्द्र नाटक ग्रन्थ होगा । यदि यह एक नाटक ग्रन्थ हो तो कन्नड साहित्य में इसका बड़ा महत्त्व होगा, क्योंकि प्राचीन कन्नड साहित्य में नाटक ग्रंथों का सर्वथा अभाव है । इसमें सन्देह नहीं है कि केशिराज एक श्रेष्ठ कवि हैं ।
मल्लिकार्जुन के सूक्तिसुधार्णव की पूर्वपीठिका नामक प्रथम आश्वास को छोड़कर शेष १८ आश्वासों में १८ प्रकार के वर्णन मिलते हैं । इस वर्णनों के पद्य बहुत ही सरस हैं । इस संकलन में कंद और वृत्त ही लिये गये हैं । सूक्तिसुधार्णव कन्नड साहित्य के इतिहास की दृष्टि से बहुत ही मूल्यवान् है । अभी तक अनुपलब्ध एवं अप्राप्य अनेक काव्यरचनाओं के कतिपय अंश इस संकलन में मिलते हैं । कवियों के कालनिर्णय के लिए भी यह ग्रंथ आधारभूत है । इस संकलन में उद्धृत पद्यकाव्यों के रचयिता ई० सन् १२५० के पूर्व के सिद्ध होते हैं । जबकि इसमें अनुद्धृत सभी कवि परवर्ती सिद्ध होते हैं ।
सूक्तिसुधाणंव के संग्रहकार्य में पिता के साथ केशिराज का भी योगदान रहा होगा । पूर्ववर्ती सभी काव्य ग्रंथों के अवलोकन से केशिराज को अपने व्याकरण ग्रन्थ शब्दमणिदर्पण की रचना में पर्याप्त सहायता मिली होगी । केशिराज ने इन्हीं ग्रन्थों के आधार पर व्याकरण सम्बन्धी नियमों का संग्रह किया होगा । शब्दमणिदर्पण एक सुन्दर व्याकरण ग्रंथ है । इसके सूत्र कंद
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