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कन्नड जैन साहित्य का इतिहास , है । महाबल ने अपने कविता-चातुर्य की स्वयं प्रशंसा की है। इनका नेमिनाथपुराण एक चम्पूग्रंथ है। यह १६ आश्वासों में पूर्ण हुआ है। इसमें हरिवंश तथा कुरुवंश दोनों की कथा वर्णित है। ग्रन्थारम्भ में सभी कवियों की तरह सिद्ध, सरस्वती आदि की स्तुति के उपरान्त आचार्य एवं कवियों की स्तुति की गई है । नेमिनाथपुराण का बन्ध प्रौढ़ है । यह पुराण अभी अप्रकाशित है।
आंडय्य
आंडय्य के काव्य का नाम कब्बिगरकाव अर्थात् मदनविजय है। कन्नड़ भाषाभाषियों के निवेदन पर इन्होंने इस काव्य की रचना की थी। वस्तुतः यह रचना कन्नड भाषाभाषियों के लिए कवि की एक अपूर्व देन है। मदन विजय काव्य में वैदिक पुराणोक्त शिव और काम का युद्ध वर्णित है। किसी. भी जैन मूल ग्रन्थ में अनुपलब्ध एक नवीन कथा को कवि ने स्वप्रतिभाचातुर्य के द्वारा सुन्दर ढंग से निरूपित किया है। अपनी पूर्व स्थिति के सम्बन्ध में अनजान बना हुआ काम रति के द्वारा कामविजय सम्बन्धी अपनी ही कथा को सुनकर शाप से मुक्त हो जाता है । वस्तुतः यह कवि की एक नवीन उद्भावना है। आंडय्य कन्नड साहित्य को एक नवीन कथावस्तु प्रदान करने के लिए ही नहीं, अपितु अपनी कथन-शैली और भाषा-वैशिष्ट के लिए भी चिरस्मरणीय हैं। पूर्व के कवियों की कृतियों में संस्कृत समासपदों की क्लिष्टता को देखकर कवि का मन दुःखी हुआ होगा और इसीलिए उसने देश्य एवं तद्भव शब्दों को अपनाने का प्रयास किया होगा। आंडय्य की भाषा-शैली ललित एवं मधुर तथा वर्णन चित्ताकर्षक हैं । इसके काव्य में प्रयुक्त 'मुक्तपदग्रास' नामक शब्दालंकार स्वाभाविक तथा ललित है।
कवि ने अपने काव्य में जैन धर्म की श्रेष्ठता को बहुत ही सुन्दर ढंग से चित्रित किया है। एतदर्थ केवल एक उदाहरण पर्याप्त होगा। एक ही बाण से शिव को अर्धनारीश्वर बनानेवाला महाशूर मन्मथ ( कामदेव ) एक श्रमण ( मुनि ) को देखकर थर-थर कांपने लगा और उस श्रमण की महान् तपस्या से प्रभावित होकर वह भक्ति से विनम्र बन गया। जब एक श्रमण में ही इतनी सामर्थ्य हो तो फिर तीर्थङ्कर की महिमा का क्या कहना? जिन और शिव में क्या समानता? जैन धर्म की महिमा को दिखाने के लिए कवि आडय्य का यह कथा-चातुर्य प्रशंसनीय है। वस्तुतः आंडय्य के इस काव्य में लालित्य एवं माधुर्य दोनों ही उपस्थित हैं।
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