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________________ चम्पूयुग में उपलब्ध होते हैं। विदित होता है कि कमलभव को कविकंजगर्भ और सूक्तिसंदर्भगर्भ की उपाधियां प्राप्त थीं। कमलभव ने पूर्वकवियों में पंप, पोन्न, नागचन्द्र, रन्न, बन्धुवर्म तथा नेमिचन्द्र आदि का स्मरण किया है। इन्होंने अपनी रचना में अपने गुण एवं कविता-चातुर्य की प्रशंसा भी स्वयं की है। कमलभव का शान्तीश्वरपुराण १६ आश्वासों में विभक्त है। ग्रन्थ के प्रारम्भ में कवि ने शान्तीश्वर एवं सिद्धों की स्तुति के अनन्तर प्रायः सभी प्रसिद्ध आचार्यों एवं कन्नड कवियों की स्तुति की है। आर० नरसिंहाचार्य के मत में यह एक लालित्यपूर्ण काव्य रचना है। इसमें कवि की काव्य धारा निर्बाध रूप से प्रवाहित हुई है। इसमें सन्देह नहीं है कि कमलभव एक प्रतिभाशाली कवि हैं । इनका शान्तीश्वरपुराण मैसूर सरकार की ओर से •प्रकाशित हो चुका है। संभव है कि कमलभव के द्वारा अन्य कोई ग्रन्थ भी रचा गया हो । परन्तु अभी तक केवल शान्तीश्वरपुराण ही उपलब्ध हो सका है। महाबल इन्होंने नेमिनाथपुगण की रचना की है। ये भारद्वाज गोत्र के हैं। इनके पिता रायिदेव, माता राजियक्क, गुरु मेघचन्द्र थे। प्रत्येक आश्वास के अन्त में गद्य में कवि ने 'माघचन्द्रत्रविद्यचक्रवर्तिश्रीपादप्रसादासाधित. सकलकलाकलाप' यों विद्यचक्रवर्ती माधवचन्द्र को सादर स्मरण किया है। सम्भवतः माधवचन्द्र महाबल के विद्यागुरु थे। नेमिनाथपुराण का रचना . काल शक संवत् ११७६ ( ई० सन् १२५४ ) है, इसका उल्लेख कवि ने स्वयं किया है। केतयनायक अथवा क्षेमंकर ने महाबल के द्वारा नेमिनाथपुराण की रचना कराई थी। केतयनायक स्वयं कवि थे। यह बात उपयुक्त पुराण से ही विदित होती है। केतय की पत्नी श्रीपति की पुत्री मरुदेवी थी। मरुदेवी की एक पुत्री थी, जिसका विवाह कलिदेव के साथ हुआ था। केतयनायक ने कोटिबागे जिनालय में व्रत लिया था। कवि महाबल श्रीपति के पुत्र लक्ष्म का गुरु था। महाबल ने अपने को 'सचिव' लिखा है; सम्भवतः ये केतयनायक के 'सचिव' रहे होंगे । कवि ने लिखा है कि उसने अपने ग्रन्थ नेमिनाथपुराण को श्रुताचार्य आदि की उपस्थिति में सभा में सुनाकर अपने शिष्य (पूर्वोक्त ) लक्ष्म से लिखवाया है। महाबल को 'सहजकविमनोगेहमाणिक्यदीप' और 'विश्वविद्याविरिचि' नामक उपाधियाँ प्राप्त थीं। इन्होंने अपने पूर्ववर्ती कवियों का स्मरणनहीं किया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002100
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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