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________________ कन्नड जैन साहित्य का इतिहास कवित्वशक्ति का पता लगता है । इस विस्तार में कोई भी भाग अप्रकृत अथवा असंबद्ध नहीं मालूम होता है। जैन पुराणों का प्रधान रस शांतरस है। शृंगारादि अन्य रस इस प्रधान रस के सहायक मात्र हैं। कवि का कहना है कि जिस तरह तिक्त औषधियों में प्रवृत्ति कराने के लिए अबोध बालकों को शर्करा आदि मधुर वस्तु दी जाती है, उसी तरह मोक्ष के प्रति अरुचि रखनेवाले व्यक्तियों को उस ओर आकर्षित करने के लिए ही शृंगारादि रसों का प्रयोग जैन पुराणों में किया जाता है। ऐसी दशा में शांतरसप्रधान काव्यों में शृंगारादि रसों को अधिक महत्त्व न देकर उसके प्रधान रस की यथावत् रक्षा करनेवाले कवि का प्रतिभाचातुर्ष वस्तुतः प्रशंसनीय है। ___ जैन कवियों में पुराण के अंगों के प्रश्न पर मतभेद हैं, कुछ लोग पुराण के आठ अंग मानते हैं तो कुछ पांच अंग मानते हैं। पुष्पदंतपुराण में आठों अङ्ग लिये गये हैं। विद्वानों का कहना है कि गुणवर्म का बंध प्रौढ़ एवं अनुप्रासयुक्त है । ग्रंथारंभ में कवि ने तीर्थङ्कर पुष्पदन्त, सिद्ध, सरस्वती, यक्षयक्षी, केवली, श्रुतकेवली, दशपूर्वधारी, एकादशांगधारी, आचारांगधारी और कुंदकुंद आदि सभी प्रसिद्ध आचार्यों की सादर स्तुति की है। गुणवर्म के चन्द्रनाथाष्टक में सिर्फ ८ पद्य हैं। ये पद्य महास्रग्धरा वृत्त में रचे गये हैं। प्रत्येक पद्य 'चन्द्र नाथ' शब्द से प्रारम्भ होता है । यह अष्टक कोल्हापुर के त्रिभुवनतिलक जिनालय के चन्द्रनाथप्रभु की स्तुतिरूप में रचित है। इसमें गम्भीर शैली में तीर्थङ्कर चन्द्र नाथ का गुणगान किया गया है। गुणवर्म की ये दोनों कृतियां मद्रास विश्वविद्यालय से प्रकाशित हो चुकी हैं। कमलभव इन्होंने शान्तीश्वरपुराण लिखा है। इनके गुरु देशीयगण, पुस्तकगच्छ और कुन्दकुन्दान्वय के यति माधनन्दी हैं। कमलभव ने पूर्व कवियों में जन्न का स्मरण किया है। इसलिए इतना तो स्पष्ट है कि ये जन्न के बाद हुए हैं। मल्लिकार्जुन ने अपने 'सूक्तिसुधार्णव' में कमलभव के ग्रन्थ से अनेक पद्यों को उद्धृत किया है। अतः कवि कमलभव का मल्लिकार्जुन के भी पहले होना सुनिश्चित है। इस आधार पर इनका समय लगभग १२३५ ई. निर्धारित किया गया है। ___'कुसुमावलि' के रचयिता देव कवि कमलभव की ग्रंथ रचना के प्रेरक रहे होंगे। यही कारण है कि कुसुमावलि के कतिपय पद्य कमलभव के ग्रंथ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002100
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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