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________________ कन्नड जैन साहित्य का इतिहास पठन से रसिक पाठकों का हृदय अवश्य प्रफुल्लित हो उठेगा। खासकर साध्वी सुनंदा तथा चंडशासन के उपाख्यान महाकवि जन्न की अनुपम कवित्व शक्ति के परिचायक हैं । दुष्ट और क्रूर चंडशासन के द्वारा पतिव्रता शिरोमणि सुनंदा का कारागार में रखा जाना, वहाँ पर उसे बुरी तरह सताया जाना, उसके पूज्यपति वसुषेण के मस्तक को सामने लाकर रखना, उसे देखकर सुनंदा का देहत्याग करना आदि दृश्य वस्तुतः हृदय विदारक हैं । इन वर्णनों में करुणरस की निर्मल गंगा निर्बाध रूप से प्रवाहित हुई है । ७४ जन्न ने ग्रंथारंभ में सभी प्रसिद्ध आचार्यों एवं कवियों का स्मरण किया है और ग्रंथान्त में अपने आश्रयदाता राजा वीरनरसिंह को हृदय से आशीर्वाद दिया है । जन्म के उपर्युक्त संक्षिप्त परिचय से विद्वान् पाठकों को उस मेधावी महाकवि के अगाध पाण्डित्य, गहन लोकानुभव, व्यापक शास्त्राध्ययन, अनुपम वर्णनवैदुष्य का पता चल जाता है। वस्तुतः जन्न एक महाकवि हैं और उनकी काव्यप्रतिभा स्पृहणीय है । विद्वानों की दृष्टि से जन्न हितमितभाषी और उचित पदप्रयोग में सिद्धहस्त थे । अनावश्यक कठिन शब्दों का प्रयोग कवि ने कहीं भी नहीं किया है । समुचित सुंदर शब्द जन्म के काव्य में प्रयुक्त हैं । लालित्य, माधुर्यादि गुणों से परिपूर्ण जन्न का कथा-कौशल्य सर्वांग सुन्दर है । गुणव (द्वितीय) यह पुष्पदंतपुराण तथा चन्द्रनाथाष्टक के रचयिता हैं । इनका आश्रयदाता राजा कार्तवीर्य का सामंत शांतिवर्म है । कार्तवीर्य के गुरु मुनिचन्द्र ही इनके भी गुरु हैं । गुणवर्म ने पूर्व कवियों की स्तुति में महाकवि जन्न ( ई० सन् १२३० ) की स्तुति की है । अतः यह निर्विवाद सिद्ध है कि कवि गुणवर्म जन्न के बाद हुए । मल्लिकार्जुन ( ई० सन् १२४५ ) ने इनके पुष्पदंत पुराण के कतिपय पद्यों का अनुकरण किया है । इसलिए यह भी सिद्ध है कि गुणवर्म मल्लिकार्जुन के पूर्व के हैं । इन आधारों पर आर० नरसिंहाचार्य की राय है कि कवि गुणवर्म लगभग १२२५ ई० में जीवित रहे होंगे । नरसिंहाचार्य जी के मतानुसार ई० सन् १२२९ में उत्कीर्ण सौंदत्ति के शिलालेख में उल्लिखित कार्तवीर्यं मुनिचन्द्र और शांतिनाथवर्मं ही, निस्सन्देह गुणवर्म के द्वारा स्मृत कार्तवीर्यं मुनिचन्द्र तथा शांतिवर्म हैं । शिलालेख में शांतिनाथ को मुनिचन्द्र का आत्मज बतलाया गया है । इसके अतिरिक्त शिलालेख में इन्हें 'इष्टशिष्ट चिन्तामणि' भी कहा गया है । पुष्पदंतपुराण में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002100
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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