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चम्पूयुग होनेवाली इसकी कविता के प्रवाह को देखकर बड़ा आश्चर्य होता है। प्रो. डी० एल० नरसिंहाचार्य ने अपने एक लेख में वादिराज के संस्कृत यशोधर काव्य से जन्न के इस यशोधरचरित की तुलना की है और अनेक दृष्टियों से यशोधरकाव्य की अपेक्षा यशोधरचरित को उत्तम सिद्ध किया है। कहने का तात्पर्य यह है कि महाकवि जन्न वस्तुतः कन्नड साहित्य के महान् कवियों में से एक हैं।
कवि का दूसरा ग्रंथ अनन्तनाथपुराण है । यह एक चम्पू काव्य है। इसमें १४वें तीर्थकर अनन्तनाथ की पवित्र जीवनी चित्रित है। साथ-साथ इसमें इसी वंश के बलदेव सुप्रभ, वासुदेव पुरुषोत्तम और प्रतिवासुदेव मधुकैटभ का चरित्र भी वर्णित है। अनन्तनाथपुराण १४ आश्वासों में विभक्त है। इसमें कवि ने अलंकारों को विशेष स्थान नहीं दिया है। यह पुराण दोरसमुद्र ( हलेबीडु ) के शान्तीश्वर जिनालय में पूर्ण हुआ था। इसमें यशोधरचरित के भी अनेक पद्य उपलब्ध होते हैं । इसमें स्पष्ट है कि यह ग्रंथ यशोधर चरित के बाद का है। ___ आचार्य गुणभद्ररचित उत्तरपुराण, चाउण्डराय रचित चाउण्डरायपुराण आदि प्राचीन कृतियों को आदर्श मानकर कवि ने नवीन सन्निवेशों की कल्पना की है। पंप आदि पूर्व कवियों के मार्ग का अनुसरण करते हुए महाकवि जन्न ने इस सुरुचिपूर्ण एवं काव्यलक्षण से युक्त पुराण की रचना करके अपने कवित्व की प्रौढ़ता को व्यक्त किया है। वस्तुतः इसके पठन से जहाँ रसिकों का मनोरंजन होता है, वहीं भावुक भव्य जीवों की जिनेन्द्र भगवान् में अनन्य एवं अविचल भक्ति उत्पन्न होती है । इस ग्रन्थ में महाकवि जन्न ने दैनंदिन अनुभव की घटनाओं को चित्ताकर्षक शैली में प्रस्तुत किया है। इस काव्य ने सभी को आकृष्ट कर दिया था। इस पुराण में जैन सिद्धान्तों के मार्मिक उपदेश एवं तपस्या के विशद् वर्णन के साथ ही इसमें तीर्थंकर अनंतनाथ के पंचकल्याणकों का वर्णन है । इसमें उनकी बाललीला, यौवन-प्राप्ति पर मातापिता के द्वारा कन्यान्वेषण एवं विवाह का आयोजन, सांसारिक सुख-भोग
और उनके उद्दीपक वसन्त ऋतु, चन्द्रोदय आदि का सजीव प्रस्तुतीकरण है । बाद में संसार से विरक्ति, तपस्या, केवलज्ञान, निर्वाण प्राप्ति आदि का सुंदर चित्रण है।
शृगार, वीर, करुण, और हास्यादि विविध रसों की सृष्टि करके जन्न ने प्रस्तुत पुराण को बहुत ही आकर्षक बनाया है। एक बार इसके आद्योपान्त
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