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कन्नड जैन साहित्य का इतिहास कवि का बंध ललित और मधुर है। पार्व संगीत तथा नृत्य के भी विशेषज्ञ थे। अपनी रचना में इन्होंने इन कलाओं का भी उपयोग किया है। पार्श्वनाथ पुराण के १२वें आश्वास के १९वें से ३१वें पद्य तक संगीत और नुत्य का वर्णन बहुत ही सुन्दर है । पार्श्व कन्नड एवं संस्कृत दोनों भाषाओं के मर्मज्ञ कवि थे । इनकी रचना में संदर्भानुसार अलंकार, नीति तथा लोकोक्तियों का सुंदर ढंग से प्रयोग हुआ है। कथा भाग सरस, शैली प्रवाहमय और वर्णन सुन्दर है । कमठ का चरित्र-चित्रण भी चित्ताकर्षक है।
जन्न
यह यशोधरचरित तथा अनन्तनाथपुराण के रचयिता हैं । 'मोहानुभवमुकुर' (लगभग १४०० ई०) नामक ग्रंथ से ज्ञात होता है कि इनका 'स्मरतंत्र' नामक एक अन्य ग्रन्थ भी था। किंतु वह अभी तक उपलब्ध नहीं हुआ है। जन्न काश्यपगोत्रीय हैं। इनके पिता शंकर और माता गंगादेवी हैं । शंकर होय्सल राजा नरसिंह (ई० सन् ११४१-११७३) का कटकोपाध्याय (सेना-शिक्षक) था। इन्हें 'सुमनोबाण' नामक उपाधि प्राप्त थी। कवि जन्न का जन्म आषाढ़ कृष्ण त्रयोदशी के शुभ दिन रेवती नक्षत्र में शिवयोग में हुआ था (अनन्तनाथ पुराण, आ० ४, पद्य १३६-१३७ तथा मा० १४, पद्य ७५)। इनकी धर्मपत्नी दण्डाधिपति रेचण की पुत्री लकुमादेवी थीं। कानूर्गणीय माधवचन्द्र के शिष्य गण्ड विमुक्त मुनि रामचन्द्रदेव इनके गुरु थे। जगदेकमल्ल (ई. सन् ११३८११५०) के कटकोपाध्याय (सेना-शिक्षक) अभिनवशर्ववर्म नामक उपाधिधारी द्वितीय नागवर्म जन्न के उपाध्याय (शिक्षक) थे (अनंतनाथपुराण, आ० २, पद्य ३४)। 'सूक्तिसुधार्णव' के रचयिता मल्लिकार्जुन (लगभग ई० सन् १२४५) कवि के बहनोई थे। 'शब्दमणिदर्पण' के रचयिता केशिराज (लगभग ई० सन् १२६०) जन्न के भागिनेय थे। इस प्रकार कवि जन्न बड़े भाग्यशाली थे, उनके सम्बन्ध उच्च घरानों से थे ।
जन्न तर्क, व्याकरण, साहित्य, नाट्य आदि शास्त्रों के ही पारगामी नहीं थे (यशोधरचरित, आ० १, पद्य १८-१९) बल्कि वे दृढ़काय तथा साहसी थे तथा शस्त्रविद्या में भी पारंगत थे। इस तरह शस्त्र-शास्त्र दोनों में प्रवीण होने के कारण वे तत्कालीन शासक वीरनरसिंह के यहां मंत्री तथा दण्डाधीश जैसे गरिमामय उभय पदों पर आसीन थे (अनंतनाथपुराण, आश्वास १, पद्य २४)। वस्तुतः कवि के शस्त्र-शास्त्र सम्बन्धी अद्भुत पाण्डित्य ने ही गुणग्राही राजा
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