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________________ चम्पूयुग पार्श्वपण्डित इन्होंने पार्श्वनाथपुराण की रचना की है। इनके पिता लोकणनायक, माता कामियक्क, अग्रज नागण और गुरु वासुपूज्य हैं। कवि ने पार्श्वनाथपुराण को ई. सन् १२२२ में रचा है। मालूम होता है कि पार्श्व सौंदत्ति के शासक कार्तवीर्य चतुर्थ (ई. सन् १२०२-१२२० ) की सभा में आस्थान कवि थे क्योंकि इन्होंने अपनी रचना में अपने को स्पष्ट रूप से कार्तवीर्य का आस्थानकवि घोषित किया है। कवि पार्श्व का समकालीन रट्टवंशीय शासक कार्तवीर्य चतुर्थ ही है। ___ कवि ने राजा लक्ष्मण को कार्तवीर्य का पुत्र बतलाया है। अन्यान्य शिलालेखों से सिद्ध होता है कि राजा लक्ष्मण ई० सन् १२२९ में शासनारूढ़ था। उपर्युक्त उल्लेखों के अतिरिक्त रायल ऐशियाटिक सोसाइटी की बम्बई शाखा के जर्नल (भाग १०, पृष्ठ २२०) में प्रकाशित एक शिलालेख के अंतिम पद्यमें उस शिलालेख के लेखक का नाम पार्श्व बतलाया गया है। उक्त शिलालेख ई० सन् १२०५ में लिखा गया था। इसमें कूडि मण्डलान्तर्गत वेणु ग्राम के रट्टान्वय शासक कार्तवीर्य तथा मल्लिकार्जुन का उल्लेख है। इसके साथ ही कार्तवीर्य द्वारा मण्डलाचार्य शुभचन्द्र भट्टारक को दिये गये दान का भी उल्लेख है । ऐसा प्रतीत होता है कि उक्त शिलालेख कवि पार्श्व द्वारा स्तुत कार्तवीर्य के शासनकाल में ही लिखा गया होगा क्योंकि पार्श्व की रचनाओं में उनके लिए प्रयुक्त 'कविकुलतिलक' की उपाधि शिलालेख के अंतिम पद्य में भी मौजूद है। पार्श्व को सुकविजनमनोहर्षसस्यप्रवर्ष, विविधजनमनःपद्मिनीपद्ममित्र तथा कविकुलतिलक की उपाधियाँ प्राप्त थीं। इन्होंने पूर्व कवियों में पंप, पोत्र, रन, कर्णपार्य, गुणवर्म आदि कन्नड कवियों का तथा धनंजय एवं भूपाल नामक संस्कृत कवियों का सादर स्मरण किया है । धनंजय 'द्विसंधानकाव्य' के एवं भूपाल 'जिनचतुर्विशतिका' के रचयिता मालूम होते हैं । महाकवि धनंजय अपने द्विसंधानकाव्य के कारण विख्यात हैं। इस काव्य का अपरनाम राघवपाण्डवीय है। इस काव्य में रामायण तथा महाभारत दोनों की कथा एक साथ वर्णित है। कवि पार्श्व का पार्श्वनाथपुराण चम्पू काव्य है। इसमें १६ आश्वास हैं। इस पुराण में २३वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के चरित्र का चित्रण किया गया है। कवि ने अपने इस पुराण की प्रशंसा स्वयं की है। पार्श्व ने अपने ग्रन्थ के आरंभ में सभी प्रसिद्ध कन्नड एवं संस्कृत-प्राकृत जैन कवियों का स्मरण किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002100
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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