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कन्नड जैन साहित्य का इतिहास
बंधुवर्म
इन्होंने 'हरिवंशाभ्युदय' तथा 'जीव संबोधन' की रचना की है। ये वैश्य कवि हैं। कवि ने अपनी रचना में अपने वर्ण के अतिरिक्त जन्मस्थल, मातापिता आदि अन्य किसी भी बात का उल्लेख नहीं किया है। कवि कमलभव (लगभग १२३५ ई०) ने अपनी रचना में स्वर्गवासी बंधुवर्म का स्मरण किया है, इससे ज्ञात होता है कि बंधुवर्म कमलभव के पूर्ववर्ती थे। आर० नरसिंहा. चार्य के मत से इनका समय ई. सन् बारहवीं शताब्दी है।
नागराज, मंगरस आदि कवियों ने बंधुवर्म की बड़ी प्रशंसा की है। किन्तु आश्चर्य की बात यह है कि बंधुवर्म ने अपनी रचना में किसी भी पूर्व कवि का स्मरण नहीं किया है। बल्कि इन्होंने अपने कवि चातुर्य की प्रशंसा स्वयं की है। हरिवंशाभ्युदय में २२वें तीर्थंकर नेमिनाथ का चरित्र सुन्दर ढंग से वणित है। इसमें २४ आश्वास हैं। ग्रंथ की शैली सहज एवं सुन्दर है। कवि का बंध ललित और कल्पनाविलास चित्ताकर्षक है । इसमें सन्देह नहीं है कि इस रचना में सौंदर्य और लालित्य दोनों ही उपस्थित हैं।
बंधुवर्म का दूसरा ग्रंथ जीवसंबोधन है। यह नीतिवैराग्यबोधक ग्रंथ है। इसमें १२ अधिकार हैं । जैनसाधना में १२ अनुप्रेक्षाओं का स्थान बहुत ऊँचा है। वस्तुत: ये ही मानव को वैराग्य की पराकाष्टा पर पहुँचाती हैं। तीर्थंकर भी इन्हीं के द्वारा अपनी वैराग्य दशा को पुष्ट करते हैं। पापभीरु एवं सच्चा धर्मश्रद्धालु व्यक्ति प्रतिदिन नियम से इन अनुप्रेक्षाओं का स्मरण करता है। अनुप्रेक्षा का अर्थ है वस्तु स्वभाव का गहन चिंतन । जब वस्तुस्वभाव का चिंतन गहन एवं तात्त्विक होगा तो रागद्वेष आदि वृत्तियां क्षीण होती जायेंगी। जिन विषयों का चिंतन हमारी राग द्वेष की वृत्तियों के शोधने में विशेष उपयोगी हो सकता है, ऐसे बारह विषयों को चुनकर उनके चिंतन को ही बारह अनुप्रेक्षाओं के रूप में गिनाया गया है। अनुप्रेक्षाओं को भावना भी कहते हैं। ____ बंधुवर्म ने जीवसंबोधन में इन अनुप्रेक्षाओं का बहुत ही सरल, स्वाभाविक एवं चित्ताकर्षक ढंग से वर्णन किया है। इसमें सन्देह नहीं है कि कवि अपने कार्य में पूर्ण सफल हुआ है। अध्यात्मप्रेमी-जैनेतर विद्वान् भी इस ग्रंथ की मुक्त कंठ से प्रशंसा करते हैं। इसमें धर्म के साथ ही साथ सोदाहरण नीति की शिक्षा दी गई है। ग्रंथ की शैली ललित एवं सुन्दर है। तमिल भाषा में भी इसी नाम का एक ग्रंथ है। प्रायः दोनों के विषय मिलते-जुलते हैं। जीवसंबोधन का हिन्दी-अनुवाद होना चाहिये ।
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