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चम्पूयुग 'तार्किकतिलक' भी कहा है । इससे सिद्ध होता है कि नेमिचन्द्र काव्य, सिद्धान्त आदि के साथ न्यायशास्त्र के भी विशेषज्ञ थे । कवि के अन्य किसी ग्रंथ का पता नहीं लगा है। बोप्पण पण्डित
इन्होंने बालचन्द्र के सहयोग से २७ कन्नड पद्यों में श्रवणबेळगोळस्थ श्री गोम्मटेश्वर की स्तुति की है । ये पद्य लगभग ११८० ई० के श्रवणबेळगोळ के २३४ वें शिलालेख में उत्कीर्ण हैं। निर्वाणलक्ष्मीपतिनक्षत्रमालिका नामक इनकी एक अन्य लघुकाय कृति भी मिलती है । 'सुजनोत्तंस' शब्द से पूर्ण होने वाले अनेक नीतिबोधक कन्द पद्य भी इनके ही मालूम होते हैं क्योंकि कवि की उपाधियों में 'सुजनोत्तंस' भी एक उपाधि है । इनके अतिरिक्त इन्होंने अन्य किसी ग्रंथ की रचना की है, यह ज्ञात नहीं है ।
शिलालेख में उत्कीर्ण पद्यों को इन्होंने अध्यात्मर सिक बालचन्द्र के सहयोग से रचा है। अत: ये उनके समकालीन होने चाहिए । बालचन्द्र का समय लगभग ११७० ई० है। श्रवणबेळगोळ के जिस शिलालेख में बोप्पण के ये पद्य उत्कीर्ण हैं, उस शिलालेख का समय लगभग ११८० ई० है । अतः कवि का समय भी लगभग यही होना चाहिए। बोप्पण के प्रेरक अध्यात्म रसिक बालचन्द्र जिनस्तुति के रचयिता एवं प्राभृतत्रय, परमात्मप्रकाश आदि संस्कृत एवं प्राकृत के अन्यान्य आचार्यों द्वारा प्रणीत आध्यात्मिक ग्रंथों के सफल कानड टीकाकार हैं । आगम ग्रंथों के टीकाकार होने के कारण ही ये अध्यात्मरसिक बालचन्द्र के नाम से प्रसिद्ध हुए होगे । बालचन्द्र मूलसंघ के देशीयगण के पुस्तक. गच्छान्तर्गत कुन्दकुन्दान्वय के अनुयायी थे। ये ई० सन् ११७६ में स्वर्गस्थ नयकीति' के शिष्य थे । दाम नन्दि नामक इनका एक बड़ा भाई भी था। ___ आचण्ण ने अपने वर्धमान पुराण में और पाल ने अपने पार्श्वनाथपुराण में बोप्पण की प्रशंसा की है । केशिराज ने भी अपने शब्दमणि दर्पण में उदाहरणस्वरूप इनके कुछ पद्यों को उद्धृत किया है। इनकी गोम्मटस्तुति एक मनोहर भावगीत है। इसमें कवि ने बड़ी भक्ति से श्री बाहबली की स्तुति की है। स्तुति के ये 'सुन्दर पद्य चित्ताकर्षक हैं। इनकी दूसरी १. देखें, श्रवणबेळगोळ का शिलालेख नं०६।। २. नागमंगल ७० ( ११७८)। ३. शब्दमणिदर्पण, पृष्ठ १०७, ११२ और १६४ ।
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