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________________ कन्नड जैन साहित्य का इतिहास कृति निर्वाणलक्ष्मीपतिनक्षत्रमालिका २७ वृत्तों की एक लघुकलेवर कृति है । प्रत्येक पद्य 'निर्वाणलक्ष्मीपति' से समाप्त होता है । ग्रन्थारम्भ में दिये गये पद्य से ज्ञात होता है कि इसकी रचना भव्य-जनों की प्रेरणा से की गयी थी। बहुत सम्भव है कि बोप्पण ने इन लघु कृतियों के अतिरिक्त कोई महत्त्वपूर्ण अन्य बृहत् ग्रंथ भी रचा हो, क्योंकि पार्श्व आदि समाजमान्य कवियों ने इसकी बड़ी प्रशंसा की है। केशिराज ने भी अपनी कृति में उदाहरणस्वरूप इनकी कृतियों से पद्यों को लिया है। स्वयं कवि ने भी अपने को स्पष्ट रूप से 'सुकविसमाजनुत' कहा है। अग्गल इन्होंने चन्द्रप्रभपुराण की रचना की है। यह भी मूलसंघ-देशीयगणपुस्तकगच्छ-कुन्दकुन्दान्वय के हैं। इनके पिता शांतीश, माता पोचाम्बिका और गुरुश्रुतकीर्ति त्रैविद्य थे। कवि इंगलेश्वरनिवासी है। इन्हें भारतीभालनेत्र, काव्यनीकर्णधार, साहित्यविद्याविनोद आदि कई उपाधियां प्राप्त थीं। अग्गल किसी आस्थान के प्रमुख कवि भी थे। यह बात इनकी कृति से ही सिद्ध होती है। इन्होंने चन्द्रप्रभपुराण की रचना ई० सन् ११८९ में की थी। कवि ने अपने पूर्ववर्ती कवियों में पंप, पोन और रन का स्मरण किया है। दूसरी ओर आचण्ण, देवकवि, अण्डय्य, कमलभव, बाहुबलि, पार्श्व आदि कवियों ने इनकी प्रशंसा की है। अग्गल का चन्द्रप्रभपुराण १६ आश्वासों में विभक्त है। एक शिलालेख से विदित होता है कि यह पुराण उन्होंने अपने श्रद्धेय गुरु श्रुतकीर्ति की आज्ञा से ही रचा है । कन्नड में उपलब्ध तीर्थकर चन्द्रप्रभ सम्बन्धी कथा ग्रंथों में यह प्रथम रचना है। कवि ने इस रचना की बड़ी प्रशंसा की है। १२वीं शताब्दी के अन्य चम्पू ग्रंथों की तरह यह भी संस्कृतभूयिष्ठ हो, सुदृढ़ बन्ध से अधिक प्रौढ़ बना है । इसमें सन्देह नहीं है कि अग्गल कविहृदय हैं और उनके वर्णनों में कल्पनाविलास है । इन्होंने अपने समय के वीरतापूर्ण जीवन पर भी प्रकाश डाला है, यद्यपि इसकी रचना शैली बहुत क्लिष्ट है। चन्द्रप्रभपुराण में भवावलियां नहीं हैं, इसलिए कथा समझने में कठिनाई नहीं होती है। आचण्ण ___ इन्होंने वर्धमानपुराण तथा श्रीपदाशीति की रचना की है। ये भारद्वाज गोत्रीय हैं । इनके पिता केशवराज, माता मल्लाम्बिका और गुरु नन्दियोगीश्वर १. बिळिगि शासन ( १५९२ )। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002100
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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