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चम्पूयुग
नेमिचन्द्र
इस युग में परम्परागत चम्पूशैली का अधिक अनुसरण होने लगा था। किन्तु जहां पम्पयुग के चम्पूकाव्य में वीररस की व्यंजना प्रधान थी, वहां इस युग की रचनाओं में श्रृंगाररस की अभिव्यक्ति अधिक होने लगी थी। पम्पयुग के महाकाव्य के आदर्श का अनुकरण करनेवाले कवियों में नेमिचन्द्र का नाम सबसे पहले आता है। श्रेष्ठ चम्पू महाकवियों की पंक्ति में नेमिचन्द्र भी एक हैं। कर्णपार्य का आश्रयदाता सामंत रट्ट राजा लक्ष्मणदेव ही नेमिचन्द्र का भी आश्रयदाता है। कवि का कहना है कि वीरबल्लाल (ई. सन् ११७३. १२२० ) के प्रधान पद्मनाभ ने इस नेमिनाथपुराण को रचवाया है। इस आधार पर नेमिचन्द्र का समय लगभग ११७० ई० है। इन्हें कविराजकुजर, साहित्य विद्याधर, सुकविकंठाभरण, भारतीचित्तचोर, चतुर्भाषाकवि चक्रवर्ती, वाग्वल्लकी वैणिक आदि उपाधियां प्राप्त थीं। आश्चर्य यह है कि जहां नेमिचन्द्र ने अपने पूर्व कवियों का स्मरण करते हुए किसी भी कन्नड कवि का उल्लेख नहीं किया है, वहीं जन्न, पाव, मधुर, मंगरस आदि कन्नड कवियों ने इनकी बड़ी प्रशंसा की है।। _शृंगाररस के वर्णन में नेमिचन्द्र सिद्धहस्त हैं। वस्तुतः इनके कविता सामर्थ्य में स्वाभाविकता है। असाधारण शब्दसंपत्ति एवं प्रवाहमय गंभीर शैली ने इनकी रचनाओं को विशेष रूप से हृदयस्पर्शी बना दिया है । नेमिचन्द्र ने नेमिनाथपुराण नामक धार्मिक काव्य की और लीलावति नामक लौकिक काव्य की रचना की है। लीलावति इनकी पहली रचना है। यह काव्य शृंगाररसप्रधान है। नेमिनाथपुराण लीलावति की अपेक्षा बृहद्काय और एक सफल रचना है। १४वीं शताब्दी के अंत में होनेवाले कवि मधुर ने नेमिचन्द्र की कविकर्मकुशलता के सम्बन्ध में लिखा है कि 'यह कोई गर्वोक्ति नहीं है अपितु सर्वानुमोदित तथ्य है कि लौकिक एवं धार्मिक रचनाओं के लिए कन्नड कवियों में नेमिचन्द्र तथा जन्न उल्लेखनीय हैं। ये दोनों कन्नड की कृतियों के लिए सीमापुरुष माने जा सकते हैं।" _लीलावति कन्नड साहित्य की प्रथम शृंगारिक रचना है। इसकी कथावस्तु सुबंधुरचित वासवदत्ता पर आधारित प्रतीत होती है। बनवासि का
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