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कन्नड जैन साहित्य का इतिहास शब्दालंकारनिर्णय और अर्थालंकारनिर्णय नामक तीन प्रकरणों में समसंश्लिष्ट आदि दश गुणों एवं शब्दालंकारों का अनुक्रम से विवेचन है ।
(४) रीतिक्रमरसनिरूपणाधिकरण नामक चतुर्थ अधिकरण में रीतिप्रकरण और रसप्रकरण नामक दो प्रकरण हैं।
(५) कविसमयाधिकरण नामक पञ्चम अधिकरण में असदाख्याति, सद्कीर्तन, नियम, अर्थ और ऐक्य नामक पाँच प्रकरण हैं। यहां इन सबका विस्तृत वर्णन करना सम्भव नहीं है। नागवर्म के मत से कृतियाँ तीन प्रकार की होती हैंपद्यमय, गधमय और मिश्रित । कथा अथवा आख्यायिका गद्यमय एवं सर्गबंध काव्य पद्यमय तथा चंपू गद्यपद्यमिश्रित होता है। नागवर्म ( द्वितीय ) ने अपने काव्यावलोकन की रचना में प्रसिद्ध संस्कृत लाक्षणिक वामन, रुद्रट, भामह और दण्डी का अनुकरण किया है । कवि का दूसरा ग्रंथ कर्णाटक भाषाभूषण हैं। यह संस्कृत भाषा में रचित कन्नड व्याकरण ग्रंथ है । सम्भवतः कन्नड से अनभिज्ञ संस्कृत विद्वानों को कन्नड भाषा के सामर्थ्य एवं सौन्दर्य का परिचय देने के लिए नागवमं ने यह प्रयास किया होगा। आगे चलकर भट्टारक अकलंक ( ई० सन् १६०४ ) ने भी शब्दानुशासन नामक एक व्याकरण ग्रन्थ की रचना की थी। भाषाभूषण में संज्ञा, संधि, विभक्ति, कारक, शब्दरीति, समास, तद्धित, आख्याननियम, अव्ययनिरूपण और निपातनिरूपण नामक दस परिच्छेद हैं। ___ नागवर्म का तीसरा ग्रंथ अभिधानवस्तुकोश है। यह कन्द वृत्तों में रचित संस्कृत-कन्नड कोश है। कन्नड में उपलब्ध बृहद् कोशों में यह प्रथम कोश है। एकार्थकांड, नानार्थकांड और सामान्यकांड, इस प्रकार इस कोश में तीन विभाग हैं। इसमें प्राचीन कन्नड' कवियों के द्वारा प्रयुक्त संस्कृत पदों का कन्नड में अर्थ दिया गया है। इसमें कवि ने वररुचि, हलायुध आदि की कृतियों से सहायता ली है। इनका चौथा ग्रंथ अभिधानरत्नमालाटीका है। इसमें हलायुधकृत अभिधानरत्नमाला नामक संस्कृत कोश के संस्कृत शब्दों के समानार्थक कन्नड शब्द दिये गये हैं। इस टीका में टीकाकार नागवर्म ने हलायुध के विभागक्रम का ही अनुसरण किया है। कन्नड काव्यों में प्रयुक्त संस्कृत शब्दों के अर्थ को जानने के लिए यह टीका विशेष उपयोगी है। .
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