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________________ पंपयुग ६१ कन्नड भाषा के अध्येताओं के लिए अत्यन्त उपयोगी लक्षण ग्रन्थ हैं । विद्वानों की राय में इनका समय लगभग ११४५ ई० है । नागवर्म के नाकिग और नाकि नाम भी थे । यह जैन ब्राह्मण थे । इनके पिता का नाम दामोदर था । इन्हें अभिनव शर्ववर्म कविकर्णपूर कविता गुणोदय और कवि कंठाभरण नामक उपाधियाँ प्राप्त थीं । ४ आचण्ण, जन्न, साळव और देवोत्तम आदि कवियों ने भी इनकी स्तुति की है । महाकवि जन्न ( ई. सन् १२०९ ) के कथनानुसार इनका एक ग्रंथ जिनपुराण भी था । परंतु अभी तक ग्रंथ उपलब्ध नहीं हुआ है । कवि ने अपनी रचनाओं में अपने को एक असाधारण पंडित तथा अनेक राजसभाओं में प्रतिष्ठा अर्जित करने वाला बताया है । नागवर्म ने अपने निवासस्थान एवं समय आदि के बारे में कुछ भी नहीं लिखा है । कन्नड लक्षण ग्रंथ रचनेवालों में नागवर्म ( द्वितीय ) नायक मणि तुल्य हैं । इन्होंने कन्नड भाषा से सम्बंधित सभी क्षेत्रों की अनुपम सेवा की है । कवि का काव्यावलोक नामक प्रथम ग्रंथ अलंकारशास्त्र का महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है । यह ग्रंथ नृपतुरंग के कविराजमार्ग से अधिक परिपूर्ण है । इसमें सूत्रों को कंद पद्यों में देकर पूर्व कवियों के ग्रंथों से उदाहरण दिये गये हैं । यह ग्रंथ निम्नलिखित पाँच अधिकरणों में विभक्त है (१) शब्दस्मृति नामक प्रथम अधिकरण में संधिप्रकरण, नामप्रकरण, समासप्रकरण, तद्धितप्रकरण और आख्यानप्रकरण नामक पाँच प्रकरणों में कन्नड भाषा के व्याकरण का शास्त्रीय एवं लालित्यपूर्ण निरूपण है । कन्नड व्याकरण के लिए शब्दस्मृति प्रथम रचना है । (२) काव्यमलव्यावृत्ति नामक द्वितीय अधिकरण के पदपदार्थसंधिदोषविनिश्चय और वाक्यवाक्यार्थदोषानुकीर्तन नामक दो प्रकरणों में पद और वाक्यों की रचना में होनेवाले दोषों को बताया गया है । (३) गुणविवेकाधिकरण नामक तृतीय अधिकरण व मार्गविभागदर्शन, १. अभिधानवस्तुकोश, पद्य ३६ । २. काव्यावलोकन की प्रशस्ति । ३. कर्णाटककविचरिते, भाग १, पृष्ठ १४४ । ४. काव्यावलोकन और वस्तुकोश । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002100
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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