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कन्नड जैन साहित्य का इतिहास
राजादित्य
इन्होंने व्यवहारगणित, क्षेत्रगणित, व्यवहाररत्न, लीलावति, चित्रहसुगे, जैनगणितसूत्रटीकोदाहरण आदि गणित ग्रंथों की रचना की है। इनके ग्रंथों से विदित होता है कि इनके भास्कर, वाचवाचय्य, वाचिराज आदि अनेक नाम थे । साथ-ही-साथ इन्हें गणितविलास, ओजेबेडंग, पद्यविद्याधर आदि उपाधियाँ प्राप्त थीं। कूडिमंडलान्तर्गत पूविनबागे इनकी जन्मभूमि थी। राजादित्य की पत्नी का नाम कनकमाला था। कवि ने अपने को 'कवीश्वरनिकरसभायोग्य' कहा है। इससे मालूम होता है कि यह दरबारी पण्डित रहा होगा। कवि ने शुभचन्द्र को अपना गुरु बतलाया है । राजादित्य ने अपनी रचना में विष्णुनृपाल का नामोल्लेख किया है। अन्यान्य आधारों से यह सिद्ध होता है कि होयसल राजा विष्णुवर्धन ने लगभग ई. सन् ११११ ११४२ तक राज्य किया था । सम्भवतः कविराजादित्य इसी विष्णुवर्धन का समकालीन था ।
श्रवणबेळगोळ के ११७वें अभिलेख से ज्ञात होता है कि एक शुभचन्द्र ११२३ में स्वर्गवासी हुए थे। यही कवि के गुरु मालूम होते हैं । यदि यह बात ठीक है तो राजादित्य विष्णुवर्धन का आस्थानपण्डित होकर लगभग ११२० में जीवित रहे होंगे । राजादित्य ने अपने पाण्डित्य एवं गुणों को समस्तविद्याचतुरानन, विबुधाश्रितकल्पमहीरह, आश्रितकल्पमहीज, विश्रुतभुवनकीर्ति, शिष्टेष्ट-जनकाश्रय, अमलचरित्र, अनुरूप, सत्यवाक्य, परहितचरित, सुस्थिर, भोगी, गंभीर, उदार, सच्चरित्र, अखिलविद्याविद्, जनतासंस्तुत्य, उर्वीश्वर निकरसभासेव्य आदि शब्दों द्वारा व्यक्त किया है। इनकी रचनाओं में व्यवहारगणित एक गद्यपद्यात्मक कृति है। इसमें सूत्रों को पद्यरूप में लिखकर टीका तथा उदाहरण दिये गये हैं । ग्रंथ आठ अधिकारों में विभक्त है। प्रत्येक अधिकार को हार संज्ञा दी गयी है। इसमें कवि ने स्वयं कहा है कि इस ग्रंथ को मैंने सिर्फ पांच दिनों में लिखा है। साथ ही साथ इन्होंने अपने ग्रंथ की पर्याप्त प्रशंसा भी की है।
राजादित्य के व्यवहारगणित में सहजत्रयराशि, व्यस्तत्रयराशि, सहजपंचराशि, व्यस्तपंचराशि, सहजसप्तराशि, व्यस्तसप्तराशि, सहजनवराशि, व्यस्तनवराशि आदि कई विषय हैं। श्री आर० नरसिंहाचार्य के मत से कन्नड में गणितशास्त्र को लिखनेवाले कवियों में राजादित्य ही प्रथम कवि हैं। इन्होंने गणितशास्त्र से सम्बन्ध रखनेवाले प्रायः सभी विषयों का अपने ग्रंथों में संग्रह किया है। जनता को सुलभता से समझाने के लिए गणितशास्त्र को पद्यरूप में
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