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पंपयुग
लिखना बहुत कठिन है, फिर भी इन्होंने सूत्रों एवं उदाहरणों को बहुत ही ललित पद्यों में अभिव्यक्त करने का सफल प्रयत्न किया है। इन पद्यों से यह बात स्पष्ट है कि वे केवल गणितशास्त्र के मर्मज्ञ ही नहीं थे, बल्कि एक प्रौढ़ कवि भी थे। यह ज्ञात नहीं है कि राजादित्य के इन ग्रंथों का आदर्श कौन-सा ग्रंथ था।
राजादित्य का दूसरा ग्रंथ क्षेत्रगणित. और तीसरा व्यवहाररत्न है। व्यवहाररत्न में कुल पांच अधिकार हैं । कवि का चौथा ग्रंथ जैनगणितसूत्रोदाहरण है। इसमें प्रश्न देकर उत्तर पाने का विधान बतलाया है। राजादित्य का पांचवा ग्रंथ चित्रहसुगे है । यह सूत्रटीकारूप है। इनका छठवां ग्रंथ लीलावति है, जो पद्यरूप है। इसमें गणितीय समस्याओं को उदाहरण सहित समझाया गया है। इसमें संदेह नहीं है कि राजादित्य एक अच्छे गणितज्ञ थे। संभव है कि विद्वानों की दृष्टि से ओझल इनका गणितशास्त्र सम्बन्धी अन्य भी कोई महत्त्वपूर्ण ग्रंथ रहा हो। कीर्तिवर्म
इन्होंने 'गोवैद्य' नामक ग्रन्थ लिखा है । इनके पिता त्रैलोक्यमल्लाधिप, अग्रज विक्रमांक नरेन्द्र और गुरु देवचन्द्र मुनि थे। इनके लगभग समकालीन कवि ब्रह्मशिव ने भी अपनी 'समयपरीक्षा में उपर्युक्त बातों का समर्थन किया है बल्कि ब्रह्मशिव के कथनानुसार कवि के पिता त्रैलोक्यमल्लाधिप चालुक्यवंशी सिद्ध होते हैं । चालुक्य वंश में त्रैलोक्यमल्ल ने ई० सन् ५०४२ से १०६८ तक तथा उनके पुत्र विक्रमादित्य ने ई० सन् १०७६ से ११२६ तक राज्य किया था । यही विक्रमादित्य कवि के बड़े भाई होंगे । ऐसी अवस्था में कीर्तिवर्म का समय ई० सन् ११२५ मानना अयुक्तिसंगत नहीं है । यही मत श्री आर० नरसिंहाचार्य का भी है।
विक्रमादित्य के दो भाई थे। एक जयसिंह ( तृतीय ) और दूसरे विष्णुवर्धनविजयादित्य । यह ज्ञात नहीं है कि कीर्तिवर्म इन्हीं दो में से एक था या तीसरे । मालूम होता है कि त्रैलोक्यमल्ल की केतलदेवी नामक एक जैनधर्मानुयायिनी रानी भी थी और उसने अपनी ओर से कुछ जिनालय भी बनवाये थे। संभव है कि कवि उसी का पुत्र हो । श्री आर० नरसिंहाचार्य का कहना है कि श्रवणबेळगोळस्थ ६४वें अभिलेख (११६८ ई०) में प्रतिपादित गुरुपरम्परा
9. Antiquity, Vol. XIX, P. 268.
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