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पंपयुग
(२) मालूम होता है कि नागचन्द्र उद्दण्ड घोड़ों की चाल से अच्छी तरह परिचित थे। साथ-ही-साथ ऐसे घोड़ों पर चढ़ना वह अधिक पसन्द करते थे । इसीलिए एतज्जन्य कवि का अनुभव सर्वथा श्लाघनीय है (पंपरामायण, आश्वास ४, पद्य १०५, २०६, २०८, १११, ११२, ११४, ११८ और १२०)
(३) सीता का पतिवियोगजन्य तथा राम का पत्नीवियोगजन्य असीम दुःख पंपरामायण में बहुत ही हृदयविदारक ढंग से वर्णित है। इस वर्णन को पढ़ने से वस्तुतः पाठकों की आंखें भर आती हैं और मर्यादापुरुषोत्तम रामचन्द्र एवं पतिव्रताशिरोमणि सीता के प्रति सहानुभूति पैदा होती है ( पंपरामायण, आश्वास ७, पद्य १०७, १११, ११३, ११६, ११७ और ११८)।
(४) इसी प्रकार 'मल्लिनाथपुराण' में वसन्तोत्सव का वर्णन भी सर्वथा पठनीय है । इस वर्णन में खासकर मामर-मल्लिकालताओं का विवाहवर्णन एक कुतूहलोत्पादक वस्तु है ( मल्लिनाथपुराण, आश्वास ६, पद्य ४०, ४३, ४४, ४५ और ४६ )। __नागचन्द्र एक रसिक कवि था। साथ-ही-साथ इसमें अगाध पांडित्य भी मौजूद था। इन कृतियों में सर्वत्र कवि की अनुप्रासप्रियता स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है। यमक के प्रयोग से इनका काव्यसौन्दर्य बढ़ गया है। सारांशतः नागचन्द्र के ग्रन्थों में अनुनासिक, दंत्य और अनुस्वार के आधिक्य से प्राप्त सौन्दर्य वस्तुतः दर्शनीय है। बारहवीं शताब्दी में कन्नड की भेरी को बजाने वाले प्रथम कवि अभिनवपंप के नाम से विख्यात नागचन्द्र ही हैं। महाकवि नागचन्द्र एक उद्दाम कवि हैं। उनके ग्रन्थों में क्षात्रधर्म की अपेक्षा भक्ति एवं वैराग्य का प्रवाह ही विशेष रूप से दृष्टिगोचर होता है। कवि की कृतियाँ सर्वत्र शान्त रस से ओतप्रोत हैं। इसी रस के अनुरूप कवि की काव्यशैली भी है। महाकवि पंप और रन की अपेक्षा नागचन्द्र की शैली ललित और सरल है। कति
अभी तक इस कवयित्री का कोई स्वतन्त्र ग्रंथ नहीं मिला है। केवल 'कति हंपन समस्येगळ्' नाम से इसके कुछ फुटकर पद्य अवश्य मिले हैं । द्वारसमुद्र के बल्लालराय की सभा में महाकवि अभिनवपंप द्वारा जो समस्याएँ रखी गई थीं, उन्हीं समस्याओं की पूर्ति इसने की थी। उपर्युक्त संग्रह में पूर्वोक्त सम
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