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कन्नड जैन साहित्य का इतिहास उसके हृदय को सकंप एवं द्रवीभूत करके उसी के चरणों में तल्लीन कर सके। प्रतिभापुञ्ज महाकवि नागचन्द्र में यह गुण मौजूद था।
वर्णनीय चरित्र एक ही जन्म का हो या अनेक जन्मों का, यदि कवि उसमें एक क्रम निर्धारित करने में समर्थ होता है तो उसकी प्रतिभा प्रशस्त है। इसमें संदेह नहीं है कि नागचन्द्र ने मल्लिनाथ के उभय जन्मों के पावन चरित्र को बड़ी ही बुद्धिमत्ता से एक महाजन्म के पूर्वापर के रूप में चित्रित किया है। इसमें उत्तर जन्म सम्बंधी मधुर फलों के मुख्य बीज पूर्व जन्म के चरित्र में स्पष्ट झलकते हैं । कथावस्तु में अपूर्वता लाने में कवि समर्थ हुआ है। इसमें सन्देह नहीं है कि कवि का रचना-कौशल सर्वथा प्रशंसनीय है। नागचन्द्र ने अपने मल्लिनाथपुराण में महाकवि पंप के द्वारा प्रतिपादित (१) भुवन (२) देश (३) पुर (४) राजवृत्त (५) अर्हद्विभव (६) चतुर्गति (७) तपोमार्ग और (८) फल इन आठ कथानकों को ही सहर्ष अपनाया है।
श्री बेन्द्रे के अनुसार, मल्लिनाथपुराण के २०३१ गद्य-पद्यों में से लगभग २३५० गद्य-पद्य देश, पुर राजवृत्त आदि में वर्णन के लिए ही रचे गये हैं । जनसाधारण की जीवनशैली को कवि ने विस्तारपूर्वक बहुत ही चित्ताकर्षक ढंग से प्रस्तुत किया है । इसमें मानवसुख की चरम स्थिति के साथ ही साथ जैनेन्द्र पद की सर्वोत्कृष्टता का भी वर्णन है। नागचन्द्र अर्थान्तर न्यास का अधिक प्रेमी था, फलस्वरूप मल्लिनाथपुराण में इसकी बहुलता है।
पंपरामायण एक सरस महाकाव्य है। इसका आदर्श ईसा की सातवीं शताब्दी में आचार्य र विषेण द्वारा संस्कृत में रचित पद्मपुराण है। संस्कृत पद्मपुराण का आदर्श ई० सन् प्रथम शताब्दी में विमलसूरि द्वारा रचित प्राकृत 'पउमचरियम्' है। जैन परम्परागत रामचरित्र ही इस पंप-रामायण का प्रतिपाद्य विषय है। इसमें नायक रामचन्द्र के चरित्र के अंगस्वरूप वासुदेव लक्ष्मण और प्रतिवासुदेव रावण का चरित्र, चक्रवर्ती, गणधर एवं कुलकरों के चरित्र तथा चतुर्गति, लोकस्वरूप और कालस्वरूप आदि विषयों का भी विस्तार से वर्णन किया गया है (पंपरामायण, आश्वास १, पद्य ४१)।
रामचन्द्र, लक्ष्मण, रावण, सीता, नारद, हनुमान, बालि तथा सुग्रीव पंपरामायण के प्रधान पात्र हैं। जीव का अंतिम लक्ष्य मोक्ष की साधना तपस्या है। तपस्या में प्रवृत्ति विरक्ति के द्वारा ही होती है। अतः पाठकों को इसमें इनकी
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