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कन्नड जैन साहित्य का इतिहास
चार्य का अनुमान है कि नागचन्द्र का समय लगभग ११०० ई० में रहा होगा (कर्णाटककविचरिते, पृष्ठ ९९)। श्री गोविन्द पै का अनुमान है कि कवि नागचन्द्र का जन्म लगभग ई० सन् १०९० में हुआ होगा। यह भी कहना है कि मल्लिनाथपुराण की रचना के समय कवि की अवस्था चालीस की और पंपरामायण की रचना के समय पचास की रही होगी। इस प्रकार उनका अनुमान है कि मल्लिनाथपुराण का रचनाकाल ई० सन् ११३० से पूर्व और पंपरामायण का रचनाकाल ई. सन् ११४० रहा होगा ( 'अभिनवपंप' में प्रकाशित उनका लेख देखें )। अतः उपयुक्त दोनों विद्वानों के मत से कवि नागचन्द्र का समय निस्सन्देह ग्यारहवीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध अथवा बारहवीं शताब्दी का पूर्वार्द्ध रहा होगा । नागचन्द्र के कालनिर्णय के लिए अपने 'कविचरिते' में आर० नरसिंहाचार्य ने जो प्रमाण उपस्थित किये हैं, उन पर कुछ अन्य प्रमाणों के साथ श्री गोविन्द पै ने अपने विमर्शात्मक लेख में विस्तार से चर्चा की है। इसमें संदेह नहीं है कि इस महत्त्वपूर्ण लेख में इस सम्बन्ध में काफी प्रकाश डाला गया है ।
यद्यपि देवचन्द्र (ई० सन् १८३८) के मत से 'जिनमुनितनय' और 'जिनाक्षर माला' भी नागचन्द्र की कृतियाँ हैं, परन्तु जिनमुनितनय के साहित्यिक प्रस्तुती. करण को देखते हुए इसे नागचन्द्र की कृति मानना ठीक नहीं है क्योंकि नागचन्द्र की रचनाओं से इसका बिलकुल मेल नहीं बैठता है। मालूम होता है कि यह कृति परवर्ती किसी सामान्य कवि द्वारा रची गई है । आर० नरसिंहाचार्य को प्राप्त जिनमुनितनय की ताडपत्रीय प्रति के अंतिम पद्य में 'मुनिनूतनागचन्द्र' शब्द अंकित है जिससे ज्ञात होता है कि जिनमुनितनय के रचयिता ने अपना नाम अभिनव नागचन्द्र रख लिया था। परन्तु जिनमुनितनय की मुद्रित प्रति में उपर्युक्त 'कविनूतनागचन्द्र' के स्थान पर 'यतिविनूतनागचन्द्र' छपा हुआ है। मालूम होता है कि इसी से यह कृति नागचन्द्र रचित समझी गई है। जहां तक जिनाक्षरमाला का संबंध है, इस नाम की एक लघुकाय कृति पं० एच० शेषअय्यंगार ने संपादित कर मद्रास से प्रकाशित की है । इसके रचयिता महाकवि पोन्न हैं । संभवतः इसी नाम की दूसरी कृति नागचन्द्र द्वारा रची गई हो ।
नागचन्द्र का दूसरा नाम अभिनव पंप था। इनके उपलब्ध दो ग्रंथों में पहला मल्लिनाथपुराण और दूसरा पंपरामायण है। पम्परामायण का अपरनाम रामचन्द्रचरितपुराण है। श्री गोविन्द पै, दत्तात्रेय वेन्द्रे आदि विद्वानों का मत है कि इनमें से पहले मल्लिनाथपुराण और बाद में पंप
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