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________________ पंपयग प्रकार नागचन्द्र भी विष्णुवर्धन के मास्थान से बीजापुर जाकर वहां के चालुक्य युवराज मल्लिकार्जुन के आस्थान में रहे होंगे और लगभग ११२० ई० में बीजापुर का शिलालेख लिखा होगा। बीजापुर के शिलालेख के पद्य ६ में उल्लेखित मल्लिकार्जुन के प्रोत्साहन एवं सहायता से ही कवि नागचन्द्र ने विजयपुर (बीजापुर) में मल्लिदेव के सनाम मल्लिजिनेन्द्र का मन्दिर बनवाया होगा और वहीं पर 'मल्लिनाथपुराण' की रचना की होगी। सम्भवतः ग्रंथ समाप्त होने के पूर्व ही मल्लिकार्जुन स्वर्गवासी हो गया होगा और इसीलिए बाद में उसके अनुज तृतीय सोमेश्वर के आस्थान में रहकर कवि नागचन्द्र ने उपर्युक्त मल्लिनाथपुराण पूरा किया होगा। ___ मल्लिनाथपुराण के 'निजविभवोदयं सफलमायत' नामक पद्य से ज्ञात होता है कि कवि नागचन्द्र काफी संपन्न था। इनके ग्रंथों से ज्ञात होता है कि कवि को भारतीकर्णपूर, कवितामनोहर, साहित्य विद्याधर, चतुरकवि, जनास्थानरत्नप्रदीप, साहित्य-सर्वज्ञ और सूक्तिमुक्तावतंस उपाधियाँ प्राप्त थीं। नागचन्द्र के गुरु मुनि बालचन्द्र थे। परन्तु बालचन्द्र नाम के कई व्यक्ति हुए हैं। इसलिए इनमें कवि नागचन्द्र के गुरु मुनि बालचन्द्र कौन से थे, यह कहना कठिन है। श्री गोविन्द पै मंजेश्वर का मत है कि श्रवणबेळगोळ के १५८वें शिलालेख में अंकित बालचन्द्र ही नागचन्द्र के गुरु होंगे। किन्तु इस शिलालेख के बहुत से अक्षर जहां-तहां घिस गये हैं जिससे मुनि बालचन्द्र के सम्बन्ध में विशेष कुछ भी ज्ञात नहीं होता हैं । दुर्भाग्य से शिलालेख में लेखनकाल भी नहीं दिया गया है। फिर भी श्री गोविन्द पै का यह सुनिश्चित मत है कि नागचन्द्र के द्वारा अपने मल्लिनाथपुराण (आश्वास १, पद्य २०) एवं पंपरामायण ( आश्वास १, पद्य १९ ) में स्तुत स्वगुरु बालचन्द्र उपयुक्त बालचन्द्र ही हैं ( देखें, 'अभिनव पंप' में प्रकाशित गोविन्द पै का लेख )। कर्णपार्य ( लगभग ११४० ई०) दुर्गसिंह ( लगभग १५४५ ई० ), पार्श्व ( ई० सन् १२०५ ), जन्न (ई० सन् १२०९), मधुर (ई० सन् लगभग १३८५), मंगरस (ई० सन् १५०८) आदि मान्य कवियों ने नागचन्द्र की स्तुति की है। नागवर्म केशिराज आदि लक्षण ग्रंथकारों ने भी उदाहरण के रूप में नागचन्द्र के ग्रंथों के पद्यों को उधत किया है। जन्मस्थान आदि की तरह कवि नागचन्द्र के काल के सम्बन्ध में भी विद्वानों में मतभेद है। 'कर्णाटककविचरिते' के विद्वान् लेखक श्री नरसिंहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002100
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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