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कन्नड जैन साहित्य का इतिहास
रचना से कृतकृत्य हुए हैं । कवि ने अपनी कृति में पारिभाषिक शब्दों की अपेक्षा सुलभ शब्दों का ही प्रयोग अधिक किया है । काव्य का वर्णन हृदयंगम एवं सजीव है । पात्र - रचना में कवि ने अपनी कुशलता का अच्छा परिचय दिया है । इस काव्य का एक और बैशिष्टय है इसका कथा निरूपणक्रम । इसमें सन्देह नहीं है कि नयसेन सदृश कथालेखकों के लिए शान्तिनाथ मार्गदर्शक हैं । यद्यपि कवि शान्तिनाथ पर वडराधने का प्रभाव रहा हो, इसकी बहुत कुछ सम्भावना है । 'सुकुमारचरिते' में वातावरण का निरूपण बड़ा ही स्वाभाविक है । यह काव्य शिवमोग्ग के कर्णाटकसंघ की ओर से प्रकाशित हो चुका है ।
नागचन्द
इन्होंने अपनी रचनाओं में अपने देश, काल और वंश आदि के सम्बन्ध में कुछ भी उल्लेख नहीं किया है । परिणामतः इनके देश, काल और वंश आदि के बारे में इस समय निश्चित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता । श्री आर० नरसिंहाचार्य, श्री दत्तात्रेय बेन्द्रे आदि कतिपय विद्वानों की राय है कि विजयपुर अर्थात् वर्तमान बीजापुर नागचन्द्र का जन्मस्थल हो सकता है । इसका कारण यह बतलाया जाता है कि कवि ने स्वयं लिखा है कि 'विजयपुर में श्री मल्लिनाथ - जिनालय का निर्माण कराकर मैंने मल्लिनाथ पुराण की रचना की है ।'
परन्तु श्री गोविन्द पै मंजेश्वर इससे सहमत नहीं हैं । आप नागचन्द्र की कृतियों (पंपरामायण तथा मल्लिनाथपुराण ) के कतिपय पद्यों के आधार पर बनवासि या इसकी पश्चिम सीमा पर अवस्थित समुद्रतीरवर्त्ती किसी स्थान को कवि का जन्मस्थल अनुमान करते हैं (देखें - अभिनव पंप में प्रकाशित उनका लेख ) । गोविन्द पै का कहना है कि कोई भी जनश्रुति निराधार नहीं होती है । यदि यह बात यथार्थ है तो मानना पड़ेगा कि नागचन्द्र अपनी पूर्वावस्था में चालुक्य चक्रवर्ती के महामण्डलेश्वर होय्सल विष्णुवर्धन की राजधानी द्वारसमुद्र में जाकर कुछ समय तक रहे और वहाँ पर इन्होंने कवयित्री कंति को समस्यायें दी थीं । मल्लिनाथपुराण (आश्वास १, पद्य ४०) में प्रतिपादित जिनकथा को नागचन्द्र ने प्रायः विष्णुवर्धन ( ई० सन् १११०-१११५ ) के आस्थान में ही रचा होगा ।
जिस प्रकार इनके पूर्ववर्ती महाकवि रत्न प्रथमतः सायन्न के, बाद में महामण्डलेश्वर के और अंत में चालुक्य चक्रवर्ती के आस्थान में पहुँचे थे, उसी
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