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पंपयुग
३१ बतलाया है । उमास्वातिकृत तत्त्वार्थसूत्र में दस अध्याय हैं इसलिए वृत्ति में भी दस ही प्रकरण रखे गये हैं। वस्तुतः दिवाकरनन्दि विशुद्ध चरित्र एवं सद्गुणों के धारक, योगी श्रेष्ठ, जैनधर्म के प्रति दृढ़ श्रद्धालु और देशीगण के भूषणरूप एक प्रौढ़ विद्वान् भी हैं। शांतिनाथ
इन्होंने 'सुकुमारचरिते' नामक चम्पूकाव्य लिखा है। यह बात शिकारिपुर के १३६वें शिलालेख में भी अंकित है। शिलालेख शा० शक ९९० ( कीलक संवत्सर ) में लिखा गया है। कवि शान्तिनाथ भुवनैकमल्ल ( ई० सन् १०६८-१०७६ ) के सामन्त लक्ष्म नृप के मन्त्री थे। इनके गुरु व्रति वर्धमान, पिता गोविन्दराज, अग्रज कन्नपार्थ, अनुज वागभूषण और रेवण थे। नृप लक्ष्म इनके स्वामी थे। इन्होंने अपने को दण्डनाथप्रवर, परमजिनपदाम्बोजिनीराजहंस, सरस्वतीमुखमुकुरं, सहजकवि, चतुरकवि, निस्सहायकवि बताया है। ये इनकी उपाधियाँ मालूम होती है । शान्तिनाथ नृप लक्ष्म के मन्त्री ही नहीं थे, बनवसे के अर्थाधिकारी, कार्यधुरंधर और तद्राज्यसमुद्धारक भी थे। पूर्वोक्त शिलालेख के आधार से कवि शान्तिनाथ का काल ई० सन् १०६८ निश्चित किया गया है । शान्तिनाथ के आदेश से नृप लक्ष्म ने बलिग्राम के शान्तिनाथ जिनालय का शिलान्यास किया था। पूर्वोक्त शिकारिपुर के शिलालेख में कवि शान्तिनाथ की बड़ी स्तुति की गई है।
सुकुमारचरिते में १२ आश्वास हैं। तिर्यगुपसर्गों का वर्णन करनेवाली भवावलियों से युक्त यह पौराणिक कथा मनोहर एवं मार्मिक है। विद्वानों की मान्यता है कि शान्तिनाथ ने किसी अनिर्दिष्ट प्राकृत मल से वडाराधना में आगत 'सुकुमारस्वामिकथा' से ही इस ग्रन्थ की कथावस्तु ली होगी।
संस्कृत और कन्नड में उपलब्ध अन्यान्य सुकुमारचरित्र शान्तिनाथ के इस सुकुमारचरित्र के बाद की रचना हैं । इस काव्य में सूरदत्त तथा यशोभद्रा के पुत्र सुकुमार का चरित्र सुन्दर ढंग से वर्णित है । सुकुमार यशोभद्राचार्य के उपदेश से जातिस्मरण ज्ञान प्राप्त कर विरक्त हो जाता है तथा उक्त आचार्य से ही दीक्षा ग्रहण कर अन्त में मोक्ष प्राप्त करता है। विद्वानों का मत है कि शान्तिनाथ का यह काव्य महाकाव्य रन्न, पोन्न आदि के काव्यों से निम्न स्तर का नहीं है।
वस्तुतः शान्तिनाथ एक प्रौढ़ कवि थे । अपनी प्रतिज्ञानुसार वे इस काव्य
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