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________________ कन्नड जैन साहित्य का इतिहास जातकतिलक एक सुन्दर कृति है। कवि ने विवेच्य विषयों को सरल शैली में सुन्दर ढंग से लिखा है । यह मैसूर राजकीय पुस्तकालय की ओर से प्रकाशित हो चुका है । ग्रंथ हिन्दी में अनुवाद करने योग्य है ।' दिवाकरनन्दि इन्होंने उमास्वाति के तत्त्वार्थसूत्र की कन्नडवृत्ति लिखी है। इस बात का उल्लेख हमें नगर के ५७ वें अभिलेख में उपलब्ध होता है। दिवाकरनन्दि के गुरु भट्टारक चन्द्रकीति थे। मालूम होता है कि दिवाकरनन्दि 'सिद्धान्त रत्नाकर' नामक बहुमूल्य उपाधि से विभूषित थे। नगर के ५७वें एवं ५८वें अभिलेखों में इनकी बड़ी प्रशंसा की गई है। उपयुक्त अभिलेखों के लेखक मल्लिनाथ इन्हीं के प्रशिष्य थे । दिवाकरनन्दि के शिष्य सकलचन्द्र और सकलचन्द्र के शिष्य मल्लिनाथ थे। मल्लिनाथ के पिता पट्टणस्वामी नोक्क भी दिवाकरनन्दि के ही शिष्य थे । उक्त शिलालेखों में पट्टणस्वामी नोक्क के द्वारा प्रदत्त दान का विस्तृत उल्लेख है। उपर्युक्त शिलालेख चालुक्य शासक त्रैलोक्यमल्ल के शासनकाल में तथा वीर शांतार के समय में लिखे गये थे । ५८वें शिलालेख में उसका लेखनकाल भी अंकित है, यह शा० शक ९८४ ( ई० सन् १०६२ ) में लिखा गया था। स्व० आर० नरसिंहाचार्य ने अपने 'कविचरिते' में दिवाकरनन्दि का जो समय निर्धारण किया है, वह इसी शिलालेख के आधार पर किया होगा। इसमें सन्देह नहीं है कि दिवाकरनन्दि एक सुयोग्य विद्वान् थे। ये केवल कन्नड के ही विद्वान् नहीं थे, अपितु संस्कृत के भी विद्वान् थे। इन्होंने अपनी तत्त्वार्थवृत्ति का मंगलाचरण संस्कृत में निम्न प्रकार किया है 'नत्वा जिनेश्वरं वीरं वक्ष्ये' कर्णाटभाषया। तत्त्वार्थसूत्रमूलार्थ मंदबुद्धधनुरोधनः ॥ दिवाकरनन्दि की उक्त तत्त्वार्थवृत्ति के अन्त में एक गद्य है, जिससे ज्ञात होता है कि इनके गुरु केवल पूर्वोक्त भट्टारक चन्द्रकीर्ति ही नहीं थे, बल्कि पद्मनन्दि सिद्धान्तदेव भी थे । इस वृत्ति में वृत्तिकार दिवाकरनन्दि ने अपनी इस वृत्ति का लघुवृत्ति के नाम से ही उल्लेख किया है। साथ ही साथ इस गद्य में दिवाकरनन्दि ने अपने को 'आसाधितसमस्तसिद्धांतामृतपारावार' १. विशेष जिज्ञासु 'जातकतिलक'--'जैन संदेश' (शोधांक २८), भाग-२७, सं० ४८, मथुरा-१९६४, में प्रकाशित मेरा लेख देखें । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002100
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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