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पंपयुग
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इस युग के अन्य कवियों में चाउण्डराय, नागवर्म, शांतिनाथ, नागचन्द्र, नयसेन, ब्रह्मशिव, कर्णपार्य, वृत्तविलास आदि उल्लेखनीय हैं।
चाउण्डराय
चाउण्डराय ब्रह्मक्षत्रियवंशोद्भव हैं। इनके गुरु आचार्य अजितसेन हैं। ये गंगकुलचूडामणि राचमल्ल ( ई० ९७४-९८४ ) के मन्त्री एवं सेनानी थे। यह सर्वविदित है कि श्रवणबेळगोळ में गोम्मटेश्वर की प्रतिमा प्रतिष्ठापित करने का श्रेय चाउण्डराय को ही है । समरपरशुराम, वीरमार्तण्ड, प्रतिपक्षरक्षक आदि अनेक उपाधियों से विभूषित चाउण्ड राय बड़े धर्मप्रेमी और उदार थे। रन्न कवि के आश्रयदाता के रूप में भी इनका बड़ा मान था। इन्होंने 'त्रिषष्टिलक्षण महापुराण' नामक गद्यकाव्य की रचना की । 'वड्डराधने' की प्राप्ति से पहले इसी ग्रन्थ को कन्नड का प्रथम गद्यकाव्य माना जाता था। यह ग्रन्थ 'चाउण्डरायपुराण' के नाम से भी विख्यात है। इसमें तीथंकर, चक्रवर्ती आदि ६३ शलाकापुरुषों की गाथाओं का संकलन है । यह गुणभद्रविरचित उत्तरपुराण पर आधारित रचना है ।
प्रत्येक चरित्र के आदिमंगलस्वरूप एक-एक पद्य को छोड़कर चाउण्डरायपुराण एक शुद्ध गद्यग्रंथ है। यह प्राचीन कन्नड गद्यरचना की एक बहुमूल्य कृति है। इसमें चाउण्डराय ने मूल कथावस्तु में किसी भी प्रकार का अन्तर नहीं आने दिया है। इसका मुख्य कारण कवि की धार्मिक दृष्टि ही मालूम होती है । इस पुराण में कवि को स्वप्रतिभा और काव्यशक्ति को प्रदर्शित करने की स्वतन्त्रता नहीं होने से वड्डाराधने में जो वैशिष्टय है, वह वैशिष्टय इसमें नहीं आ पाया है। चाउण्डरायपुराण में धार्मिकता तो है किन्तु काव्यधर्म का अभाव है। फिर भी यह पुराण उस वक्त की गद्यशैली का प्रतिनिधित्व करता है।
इसमें संदेह नहीं है कि इसके कई पद्य बहुत ही सरल, ललित और भक्तिपूर्ण हैं । यह सम्भव है कि जैन पुराणकथाओं से अपरिचित व्यक्ति को चाउण्डरायपुराण विशेष रुचिकर प्रतीत न हो। यद्यपि इसमें भवावलियां, निर्वेग आदि पुराणसहज बातों की अधिकता है, फिर भी विश्वनन्दि-विशाखनन्द का युद्ध आदि कतिपय प्रकरण विशेष चित्ताकर्षक हैं।ये। प्रकरण चाउण्डराय के कथन कौशल के स्पष्ट साक्षी हैं । भाषाशास्त्र की दृष्टि से चाउण्डरायपुराण का गद्य कम महत्त्वपूर्ण नहीं है।
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