________________
A
२६
कन्नड जैन साहित्य का इतिहास महिमा का भी सुन्दर चित्रण करनेवाला महाकाव्य है । वस्तुतः रन्न का धवल यश गदायुद्ध काव्य से ही अमर हुआ है । इसमें सन्देह नहीं है कि रसिक वीर रत्न ने इसमें वाग्देवी के भाण्डार की मुहर अवश्य तोड़ी है । चम्पूरूप इस काव्य में २० आश्वास हैं । महाकवि रन्न ने पंप का शिष्य बनकर पंप-भारत के २३बें आश्वासांतर्गंत भीम-दुर्योधन सम्बन्धी गदायुद्ध को ही काव्य की वस्तु बनाकर एक सर्वश्रेष्ठ काव्य की रचना की है । कवि का कहना है कि साहसभीम, अकलंकचरित आदि उपाधियों के स्वामी सत्याश्रय को कथानायक बना कर भीम के साथ उसकी तुलना करते हुए मैंने इस काव्य की रचना की है । युद्धान्त में पंप अपने काव्य में जहां अर्जुन एवं सुभद्रा का पट्टाभिषेक करता है, वहीं रन्न अपनी रचना में भीम और द्रौपदी का पट्टाभिषेक करता है । रन के इस महाकाव्य में एक वैशिष्टय और है । वह है, सम्पूर्ण काव्य में दृष्टिगोचर होनेवाली नाटकीयता । यहाँ पर भट्टनारायण का वेणुसंहार और भास का ऊरुभंग इन दोनों का प्रभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है । फिर भी श्री बी० ए० श्रीकंठय्य का कहना है कि भट्टनारायण और भास से भी दृष्टि से कम नहीं हैं। बल्कि रन्न उनसे भी बढ़कर है । गदायुद्ध का एक वैशिष्ट्य यह है कि उसमें सिंहावलोकन-क्रम से भारतांतर्गत कथाओं को पात्रों के मुख से ही कहलाया गया है ।
महाकवि रन्न किसी
भीमसेन की प्रतिज्ञा, दुर्योधन का प्रलाप, भीम-दुर्योधन की पारस्परिक कटूक्ति आदि सन्दर्भों में महाभारत की कथा का मुख्यांश सुचारु रूप से निरूपित है । रन्न की शैली, पात्रों का चरित्रचित्रण, रसपुष्टिविधान, सन्निवेश निर्माण आदि विशेष गुणों के जिज्ञासु एक बार "रन्नकविप्रशस्ति" नामक विद्वानों के विमर्शात्मक लेख संग्रह को अवश्य पढ़ें । रन्न प्रतिभाशाली महाकवि हैं । उनके द्वारा चित्रित दुर्योधन का पात्र कन्नड साहित्य में अन्यत्र मिलना दुर्लभ है । प्रतिनायक दुर्योधन का पतन दुर्भाग्यवश अनिवार्य ही था । फिर भी उसमें निरूपित कतिपय उदात्त गुण इन्द्रजाल की तरह हमें दुर्योधन के प्रति सहृदय बना देते हैं । अन्त में कवि ने समयोगालंकार में निबद्ध एक सुन्दर गीत द्वारा यह भाव व्यक्त किया है, 'इधर मर्त्यलोक में कुरुकुलार्क अस्त हुआ तो उधर आकाश में अर्क भी अस्त हुआ ।'
१. विशेष के लिए 'प्रेमी अभिनन्दन ग्रंथ' में प्रकाशित 'महाकवि रन्न का दुर्योधन' शीर्षक मेरा लेख देखें ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org