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कन्नड जैन साहित्य का इतिहास
चाउण्डराय ने संकृत में भी एक ग्रंथ रचा है। इस ग्रंथ का नाम 'चारित्रसार' है। इसमें अणुव्रत, शिक्षावत, संयम, भावना, परीषहजय, ध्यान, अनु'प्रेक्षा आदि आचार धर्म का वर्णन है। चाउण्डराय बड़ा उदार था । इनके द्वारा निर्मित अपरिमित व्ययसाध्य, सर्वांगसुन्दर पूर्वोक्त गोम्भमूर्ति एवं चन्द्रगिरि में विराजमान कलापूर्ण जिनालय उसकी उदारता के ज्वलन्त प्रमाण हैं । चन्द्रगिरि में विद्यमान यह जिनमन्दिर उस पर्वत पर स्थित सभी मन्दिरों में मनोज्ञ है। ऊपर कहा जा चुका है कि यही चाउण्डराय महाकवि रन्न के आश्रयदाता थे। स्वबन्धु एवं स्वजन्मभूमि को त्यागकर विद्याध्ययन की पिपासा से आगत रन्न के विद्याध्ययन की सम्पूर्ण व्यवस्था चाउण्डराय ने ही की थी।
चाउण्डराय कवि ही नहीं अपितु एक योद्धा भी थे। विभिन्न अवसरों पर प्राप्त इसकी समरदुरन्धर, वीरमातंड, रणरंग सिंह प्रतिपक्षराक्षस, सुभट चूडामणि आदि उपाधियां इस बात की पुष्टि करती हैं। इन बातों का विशद वर्णन विध्यगिरि के वर्तमान १०९ (२८१) वें शिलालेख तथा चाउण्डरायपुराण में उपलब्ध होता है । चाउण्ड राय को उपयुक्त उपाधियों के अतिरिक्त सम्यक्त्व रत्नाकर, शोचाभरण, सत्ययुधिष्ठिर, गुणरत्नभूषण आदि धार्मिक गुणों को व्यक्त करनेवाली भी उपाधियां प्रदान की गई। ये सभी उपाधियाँ कवि के सदाचारपूर्ण धार्मिक जीवन का दिग्दर्शन कराती हैं। चाउण्डराय राय, अण्ण आदि गौरवपूर्ण नामों से भी पुकारा जाता था। चाउण्डराय का आश्रयदाता गंगकुलचूडामणि, जगदेकवीर आदि उपाधियों से समलंकृत पूर्वोक्त राचमल्ल या राजमल्ल ( चतुर्थ ) गंगवंशी नरेश मारसिंह का उत्तराधिकारी था।
मारसिंह के शासनकाल में भी चाउण्ड राय मंत्री एवं सेनापति के पद पर आसीन थे। मारसिंह भी जैनधर्म के प्रति दृढ़ श्रद्धालु थे । इन्होंने अनेक जिनमंदिरों एवं मानस्तंभों का निर्माण करा कर अन्ततः बंकापुर में आचार्य
१. विशेष के लिये 'जैन सन्देश' २० शोधांक ( में प्रकाशित ) 'महाकवि रन्न को चाउण्डराय का आश्रयदान' शीर्षक मेरा लेख देखें।
२. विशेष जिज्ञासु 'जैन सिद्धान्त-भास्कर' में प्रकाशित 'वीर मार्तण्ड चाउण्डराय' शीर्षक मेरा लेख देखें। (भाग ६, किरण ४,)।
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