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कन्नड जैन साहित्य का इतिहास गुणगान किया है। पंपभारत के २३वें आश्वास में वर्णित 'गदासौप्तिक' पर्व की कथा इसकी विषयवस्तु है। कवि ने इस रचना में समूचे महाभारत की प्रधान घटनाओं का स्मरण दिलाया है । नाटकीय शैली का उत्कर्ष इसका बहुत बड़ा आकर्षण है। संवादयोजना, कार्यव्यापारशृखला और विदूषक पात्र के निरूपण की दृष्टि से गदायुद्ध अद्भुत रचना है। इस प्रकार की विदूषक की पात्रयोजना अन्य किसी भी काव्य में नहीं मिलती है।
इस रचना का नायक भीम है। दुर्योधन प्रतिनायक है। पंपभारत में कर्ण पर जो सहानुभूति उमड़ आती है, वही गदायुद्ध के दुर्योधन पर सहसा उत्पन्न होती है। महाभारत के युद्ध का अंतिम दिन है। दुर्योधन रणक्षेत्र में कदम बढ़ा रहा है। उसे अपने पक्ष के समस्त वीर धराशायी दिखाई दे रहे हैं। प्रत्येक को देख-देख उसका कलेजा मुंह को आता है । कर्ण और दुःशासन इन दोनों को देखकर वह हतचेता हो जाता है। अभिमन्यु का शव देखते ही उसके नयनों के सामने उस वीर बालक की मूर्ति सजीव हो उठती है। उसके मन में यह विचार आता ही नहीं कि अभिमन्यु शत्रपक्ष का है। अनायास उसके मुंह से निकल पड़ता है, "तुझे जन्म देनेवाली कोई स्तन शोभित स्त्री नहीं। वीरजननी नाम सार्थक करनेवाली साध्वी है।" दुर्योधन मृत अभिमन्यु से अनुरोध करता है, "अद्वितीय पराक्रमी अभिमन्यु ! यह संभव नहीं कि तुम-सा कोई दूसरा पराक्रमी हो। मेरा यही अनुरोध है कि मृत्युरूप में तेरे पौरुष का थोड़ा-सा ही हिस्सा मुझे मिल जाय ।" यही उदात्त भाव उपपाण्डवों की हत्या की सूचना पाने के बाद व्यक्त हुआ है। अंतिम क्षण में दुर्योधन को संतुष्ट करने के लिए अश्वत्थामा उपपाण्डवों के मस्तक लाता है तो दुर्योधन बड़ा दुःखी होता है और अश्वत्थामा को स्पष्ट कह देता है कि शिशुहत्या का पाप तुम्हारे सिर पर आयेगा। दुर्योधन के इस लोकोत्तर गुणों को लक्ष्य कर विद्वान् आलोचक उसे 'महानुभाव' मानने लगे हैं। आलोचक उसे 'साहस का धनी' और 'छलदंकमल्ल' भी कहा करते हैं।
दुर्योधन रणक्षेत्र की ओर बढ़ रहा है। रास्ते में धृतराष्ट्र और गांधारी दोनों उससे मिलने आ रहे है। धृतराष्ट्र सुलह करने पर आग्रह करते हैं और आधा राज्य धर्मराज को देने के लिए जोर लगाते हैं । गांधारी लड़ाई बन्द करने हेतु उसे खूब समझाती है। वह इतने से ही सांत्वना प्राप्त कर लेती है कि जो गये लोट नहीं सकते। किन्तु दुर्योधन ही बच गया, चलो अच्छा हुआ। इस प्रकार वह भाग्य से समझौता करने को तैयार है। परन्तु दुर्योधन पर
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