________________
पंपयुग सगर सम्राट ने यह जानकर आदेश दिया कि कैलास पर्वत पर भरत सम्राट ने रत्ननिर्मित प्रतिमाएँ बनाकर रखी हैं। वे लोक के मानवों की दृष्टि में न आए, ऐसा कोई उपाय सोचो। सगर को सचेत करनेवाला उसका मित्र चेतन मणिकेतु नामक दृष्टिविषसर्प का रूप धारण कर आया और भगीरथ को छोड़कर बाकी सबको मार डाला। पीछे वह ब्राह्मणवेश में राजमहल के समीप आया और शोर मचाने लगा। जब उससे शोर का कारण पूछा गया तो जवाब में उसने कहा कि कई मनौतियों के मानने के फलस्वरूप पैदा हुआ उसका इकलौता बेटा यमलोक सिधार गया। अतः मैं तुम्हारे पैर पड़ने आया हूँ। मेरे लिए मृत्यु या आश्रय तुम्ही प्रदान कर सकते हो। सगर उस ब्राह्मण को सांत्वना देते हुए बोले, "भाई ! तुम ऐसे घर से तिनका और आग ले आओ जहाँ मृत्यु की छाया तक न पड़ी हो। मैं तुम्हारे बेटे को बचा दूंगा।" कपटी ब्राह्मण गया और लौटकर बोला कि ऐसा एक भी घर नहीं मिला। इस पर सगर ने उस ब्राह्मण को मृत्यु की अनिवार्यता की बात इस तरह समझाई, 'यमराज के पंजे से कौन बचा है ? देवता, मानव, राक्षस, पशु इन सबका सर्वनाश उसका खेल है। शवयात्रा के अवसर का जो बाजा बजता है, वह यम का विजयघोष है। चिता.धूम उसकी विजयपताका है। परिजनों का विलाप उसकी सफलता का प्रतीक है। यम की राजसत्ता के ये ही संकेत हैं ." ये सारी बातें सुनने के वाद ब्राह्मण बोला, “यह धर्मचर्चा केवल मेरे लिए है या आपके जीवन में भी इसका कोई महत्त्व है ?" सगर ने तुरन्त उत्तर दिया, "इसका आचरण मैं पहले करूँगा।" तुरन्त ब्राह्मण के मुँह से बात निकली, 'तुम्हारे ६० हजार पुत्र जीवित नहीं रहे।' भगीरथ ने भी इस बात की पुष्टि की। यह शोकवार्ता सुन कर परिजनों और रनिवास में क्रंदन मच गया। माताओं ने पुत्रों की प्राणभिक्षा मांगी और वधुओं ने पतिभिक्षा मांगी। यद्यपि सगर शोकसागर में डूबने-उतराने लगे, परन्तु रंचमात्र भी विचलित न हुए। उसी क्षण उन्होंने संसार से विरक्त होकर भगीरथ को राज्य का उत्तराधिकारी बनाया और तपस्या के लिए चल पड़े। निर्वेद की बड़ी ही गंभीर व्यंजना, महों की विशेषता है। विद्वानों का कथन है कि अजितपुराण में काव्यसौन्दर्य का अभाव नहीं है। फिर भी पंपरचित आदिपुराण की भव्यता यहाँ दृष्टिगोचर नहीं होती।
रत्न का लौकिक काव्य गदायुद्ध या साहसभीमविजय कन्नड का अपूर्व 'कृतिरत्न' माना गया है। कवि ने इसमें आश्रय दाता सत्याश्रय नरेश का
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org