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कन्नड जैन साहित्य का इतिहास. 'कविचक्रवर्ती' उपाधि को प्राप्त करनेवाले भाग्यशाली महाकवि हैं। आदिकवि पंप को भी अरिकेसरी द्वारा यह उपाधि नहीं मिली थी। 'कविचक्रवर्ती' की उपाधि को प्राप्त करनेवाले दूसरे दो जैन कवि और भी हैं रन्न और जन्न । पोन्न ने इस 'कविचक्रवर्ती' उपाधि का उल्लेख अपनी कृति में स्वयं किया है। पोन्न के पोन्निग, पोन्नमय्य, सवण आदि नाम भी थे। पोन्न अपने पूर्वकालीन पंप आदि किसी भी कवि का नाम नहीं लेता है । विद्वानों का अभिप्राय है कि अपने कवितासामर्थ्य की प्रशंसा करते हुए कवि पोन्न प्रशंसा की मर्यादा को एकदम भूल गया है।
शांतिपुराण में प्रारंभ के ९वें आश्वास तक तीथंकर शांतिनाथ के ११वें पूर्वभवों का वर्णन है। केवल अंतिम तीन आश्वासों में शांतिनाथ का चरित्र प्रतिपादित है । पोन्न की इस शांतिपुराण कथा में और कमलभव (ई०१२३५) के शांतिपुराण की कथा में अनेक स्थलों पर अंतर दृष्टिगोचर होता है। इसका क्या कारण है ? यह स्पष्ट रूप से ज्ञात नहीं है । शांतिपुराण में लोकाकार, देशनिवेशन, चतुर्गतिस्वरूप आदि जैनपुराण के आठ लक्षणों के साथ-साथ महाकाव्यों के १८ लक्षण भी मौजूद हैं । जहाँ-तहां विविध रसोत्पत्ति के अनुरूप रचनाएँ भी वर्तमान हैं, फिर भी कहना पड़ेगा कि पंप और रन्न की रचनाओं में उपलब्ध वर्णन-सौंदर्य और पात्ररचनाकौशल पोन्न की कृतियों में नहीं है । हाँ, पोन्न का बंध प्रौढ़ है। वस्तुतः पारिभाषिक शब्द और संस्कृत भाषा का व्यामोह इन दोनों ने महाकवि पोन्न की कृतियों की शैली को क्लिष्ट बना दिया है । तथापि कविता में स्वाभाविकता, निरगलता और पांडित्य मौजूद हैं।
कवि ने इसमें १९ छन्दों का उपयोग किया है। काव्य में चम्पूकाव्य के अनुकूल सुप्रसिद्ध अक्षरवृत्त एवं कंद अधिक हैं। उनमें भी शांतरसाभिव्यक्ति के सहायक कंद अत्यधिक हैं। इस पुराण में कुल १६३६ पद्य, रगळे एवं त्रिपादियां भी हैं। इसमें यत्र-तत्र सुन्दर कहावतें भी मौजूद हैं। 'जिनाक्षरमाला' पोन्न की दूसरी रचना है । यह एक जिनस्तुति है। 'गतप्रत्यागत' नामक पोन्न का एक और ग्रंथ बताया है । किन्तु यह ग्रंथ अभी तक उपलब्ध नहीं हुआ है।
रन्न ___ महाकवि रन्न मुधोळ के निवासी थे। इनका जन्म सौम्य संवत्सर (ई० ९४९) में हुआ था । रन्न की माता का नाम अब्बलब्बे एवं पिता का नाम जिनवल्ल.
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