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________________ पंपयुग पोन्न यह महाकवि राष्ट्रकूटनरेश कृष्ण तृतीय (ई० ९३९-९६८) के दरबारी कवि थे । इनकी रचना का काल ई० सन् ९५० के आसपास का रहा होगा। यह भी वेगिमंडलांतर्गत पुंगनूर के निवासी थे। वेंगिमंडल के पुंगनूर में नागमय्य नाम का एक जैन ब्राह्मण था। मल्लपय्य और पुन्नमय्य उसके दो वीर पुत्र थे । वाणियवाडि के जिनचन्द्रदेव इनके गुरु थे और अपने गुरु के गौरवार्थ विनयपूर्वक इन दोनों भाइयों ने १६वें तीर्थकर शांतिनाथ की जीवनी पर आधारित महाकवि पोन्न के द्वारा 'शांतिपुराण' की रचना कराई। इसका दूसरा नाम 'पुराणचूडामणि' है। मल्लपय्य की एक बेटी थी अत्तिमब्बे'। 'दान चिन्तामणि' इस महिला की उपाधि थी क्योंकि इसकी दानशीलता सर्वत्र विख्यात रही। इस देवी ने महाकवि पोन्न के शांतिपुराण की एक हजार प्रतियां लिखवाकर रत्न एवं सुवर्ण की जिनप्रतिमाओं के साथ उनका सम्पूर्ण कर्णाटक में दान किया। अत्तिमब्बे का नाम आज भी कर्णाटक में बड़े गौरव के साथ लिया जाता है । इसने गदग तालुक के लक्कुंडि नामक स्थल में सैकड़ों जिनालय बनवाये थे। उन सुन्दर जिनालयों में अब लक्कुंडि में केवल तीन जिनालय अवशिष्ट हैं और ये सर्वथा दर्शनीय हैं । 'भुवनैकरामाभ्युदय' पोन्न का दूसरा काव्य है। यह अभी तक उपलब्ध नहीं है । यह ग्रंथ उपलब्ध होता तो हमें पोन्न के आश्रयदाता के संबंध में प्रचुर सामग्री प्राप्त हो जाती । पोन्न का कहना है भुवनैकरामाभ्युदय में २४ आश्वास हैं जो २४ लोकों के मूल्य के बराबर हैं । राष्ट्रकूट कृष्ण (ई० ९३९-९६८) के सामन्त शंकरगंड की 'भुवनैकराम' उपाधि थी। इसलिए विद्वानों की राय है कि यह ग्रंथ भुवनैकराम उपाधि से समलंकृत शंकरगंड के प्रताप को अथवा तक्कोल में चोल राजादित्य को पराजित करने वाले मुम्मडि कृष्ण के शौर्य को वर्णन करनेवाला काव्य होगा। 'शब्दमणिदर्पण' मे केशिराज (ई० १२६०) ने इस काव्य के कुछ अंश उद्धृत किये हैं जिसे देखने से यह काव्य निःसन्देह उत्कृष्ट एवं ऐतिहासिक दृष्टि से उपयुक्त मालूम होता है। परन्तु दुर्भाग्य से यह काव्य अभी तक समग्र रूप में उपलब्ध नहीं हुआ है । पोन्न रत्नत्रय में अन्यतम हैं और मुम्मडि कृष्ण के द्वारा आदर पूर्वक १. अत्तिमब्बे के जीवनवृत्त के लिए देखें, 'चन्दाबाई अभिनन्दन ग्रंथ' में प्रकाशित 'दानचिन्तामणि अत्तिमब्बे' नामक मेरा लेख । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002100
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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