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________________ पंपयुग इस युग के साहित्य में वर्णित जनजीवन उच्च वर्ग तक सीमित था। राजदरबार या कहीं-कहीं सैनिकों का जीवन भी यहाँ अंकित मिलता है। इस युग की राजनैतिक, सामाजिक तथा धार्मिक परिस्थितियां भी प्रौढ़ रचनाओं के निर्माण के लिए प्रेरक सिद्ध हुई। ईसा की दसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में राष्ट्रकूट वंश के नरेश शक्तिशाली हुए । इस सदी के अंत तक वे उष्कर्ष को प्राप्त होते गये। साहसा उनका वैभव लुप्त हो गया। हो, वेमलवाड़ के चालुक्य तथा दक्षिण के गंग वंश के राजा बराबर राष्ट्रकूट राजाओं की सहायता करते रहे। ई० सन् ग्यारहवीं सदी में कल्याणी में चालुक्य प्रबल हुए। चोल वंश के साथ इनका संघर्ष बराबर जारी रहा। चोलों के प्रताप के कारण गंगराज्य का पतन हो गया । अकेले चालुक्य राज्यकुल पर कर्णाटक की रक्षा का भार आ पड़ा। राजकुल की आपसी फूट के कारण यह वंश कुछ समय तक दुर्बल अवश्य था, किन्तु जब विक्रमादित्य षष्ठ अपने भाई को कैद कर ई० सन् १०७६ में गद्दी पर विराजमान हुआ, तब से कर्णाटक का भाग्य फिर चमकने लगा । वह एक के बाद एक कई यूद्धों में विजयी हुआ। साथ ही साथ कर्णाटक का साम्राज्य विस्तृत होने लगा। इसके बाद चालुक्य वंश का वैभव घटने लगा और बारहवीं सदी के अन्त तक होयसल साम्राज्य की नींव पड़ते ही चालुक्य लुप्त हो गये। ___कर्णाटक में राजनैतिक परिस्थिति के अनुरूप शस्त्रास्त्रों की झंकार भी सुनाई पड़ी। युद्ध का नाम सुनते ही संभवतः जन-जन की भुजाएँ फड़क उठती रही होंगी । उस वक्त नगर या गांव की रक्षा के लिए, स्त्रियों की लज्जा बचाने के लिए, चौपायों की रक्षा के लिए प्राण त्यागने का संकल्प सानंद लोग करते रहे । वीरों की अगणित स्मारक-शिलायें ही इसका ज्वलंत प्रमाण हैं । ये शिलायें कर्णाटक में सर्वत्र मिलती हैं। वीरों की यह धारणा हो गयी थी कि युद्ध में प्राण त्यागने पर स्वर्ग मिलेगा। यह धारणा उस युग के शूर-वीर शासकों के प्रोत्साहन से और भी दृढ़ हो गयी थी। उस युग के कवि कलम चलाने में ही नहीं, तलवार चलाने में भी प्रवीण थे। महाकवि ही नहीं थे, बड़े रणकुशल भी थे । नागवर्म, चामुण्डराय आदि भी बड़े प्रतापी थे। इसीलिए यह युग कन्नड साहित्य का 'वीरयुग' भी कहलाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002100
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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