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कन्नड जैन साहित्य का इतिहास
भाषा शैली के सुन्दर नमुने भी मिल जाते | कन्नड साहित्य का यह महत्त्व - पूर्ण ग्रन्थ अपने युग का सांस्कृतिक जीवन चित्रित करने में भी सफल हुआ है । 'कविराजमार्ग' में इस अनुपम कृति का उल्लेख नहीं है । अतः यह अनुमान किया जाता है कि पम्पपूर्व युग में अर्थात् सन् ९२०-९३० ई० के लगभग इसका प्रणयन हुआ होगा । इसमें पुरानी कन्नड के प्रयोग सहज एवं सुन्दर ढंग से मोती -सदृश पदों के द्वारा व्यक्त किये गये हैं । संक्षेप में यही पंपपूर्वयुग के जैन साहित्य का इतिहास है ।
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