________________
आरम्भकाल
११
कवि ( १२०९ ) ने एक गुणवर्म का तथा नयसेन ( १२१२ ई० ) ने दूसरे गुणवर्म का गुणगान किया है । यहाँ पर गुणवमं प्रथम ( ९०० ई० ) का वर्णन किया गया है ।
का
केशिराज ने गुणवर्म को 'हरिवंश' का रचयिता माना है । इसी ग्रन्थ को पार्श्व ने 'नेमिनाथपुराण' कहा है । 'भुवनैकवीर' इनका दूसरा ग्रन्थ है । विद्यानन्द के काव्यसार में बताया गया है कि 'शूद्रक' नामक ग्रन्थ भी इन्हीं । इसमें गंगराज ए रेयप्प ( ८८६-९१३ ई० ) की तुलना शूद्रक से की गई है। गंगराज की महेन्द्रांतक, कामद आदि उपाधियां थीं । यह उल्लेखनीय है कि अपने आश्रयदाता के गुणगान में प्रत्येक जैन कवि एक लौकिक काव्य और तीर्थकरों की जीवनी से संबद्ध दूसरा धार्मिक काव्य प्रायः लिखता आ रहा है । इस परम्परा के प्रवर्तक गुणवर्म माने गये हैं । परवर्ती कवि पम्प, पोन्न और रन्न ने यही पद्धति अपनाई है । पम्प से पहले ही कन्नड में चम्पू शैली में सफल ग्रंथ रचने का श्रेय गुणवर्म को प्राप्त है ।
शिवकोट्याचार्य
पंप से पहले शिवकोट्याचार्य का नाम आता है । यह 'वड्डाराधने' के रचयिता हैं । कन्नड साहित्य की यह असाधारण रचना मानी गई है । कन्नड का प्रथम गद्यकाव्य यही है । इसमें २९ मनोरंजक कहानियाँ हैं । प्रत्येक कहानी के आरम्भ में एक प्राकृत गाहा ( गाथा ) है । षट्पदी काव्यों में सूचक पद्य की तरह यह गाहा कहानी का सार बता देती है । इन गाहाओं का कन्नड में अर्थ देते हुए कवि काव्य को प्रारम्भ करता है । इसकी वर्णन शैली बड़ी रोचक और मन को मोह लेनेवाली है । पद-योजना भी
बेजोड़ है ।
संवाद-शैली सधी हुई है और यह कहानी की गति को बढ़ाने में सफल है । काव्य की सरस, सत्त्वपूर्ण देशी शैली शिवकोट्याचार्य की प्रतिभा को प्रतिबिंबित करती है । प्राध्यापक डी० एल० नरसिंहाचार्यजी का कहना है कि बड्डाराधने का दूसरा नाम ' उपसर्ग केवलियों की कथा' रहा है । प्रत्येक कहानी का नायक एक न एक उपसर्ग के कारण देह त्यागने को प्रस्तुत होकर स्वर्ग पहुँचता है । कहानी में यही वृत्त होने से यह नाम सार्थक हुआ है । संल्लेखनाव्रत के द्वारा समाधि को प्राप्त करनेवालों के लिए ये कथाएँ विरक्ति को जगाने में पूर्ण सहायक हैं। यही नहीं, इस रचना में उस युग की
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org