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________________ २२८ मराठी जैन साहित्य का इतिहास पूजा-महोत्सव का वर्णन १८ कडवकों के पद्मावतीपालना नामक गीत में मिलता है । इसके रचयिता ने अपने गुरु का नाम देवेन्द्र कीति बताया है किन्तु स्वयं अपने नाम का उल्लेख नहीं किया है।' अनन्तकीति ये चन्द्रकीर्ति के शिष्य थे । इनकी एकमात्र उपलब्ध रचना दशलक्षणव्रतकथा में १८८. ओवी हैं। जयसिंगपेठ में शक १६९७ ( सन् १७७५ ) में इसकी रचना हुई थी। भाद्रपद शुक्ल पंचमी से चतुर्दशी तक उत्तम क्षमा आदि दस धर्मांगों की पूजा की जाती है। इसी का माहात्म्य इस कथा में वर्णित है। जनार्दन ये भी चन्द्र कीर्ति के शिष्य थे। वासिम के पास शर्कराग्राम में शक १६९७ (सन् १७७५ ) में इन्होंने श्रेणिकचरित्र की रचना की। इस विस्तृत ग्रंथ में ४० अध्याय हैं । गुणदास के श्रेणिकचरित्र का यह परिवधित संस्करण कहा जा सकता है। नवरसपूर्ण कथा लिखने का संकल्प जनार्दन ने किया था और वह काफी हद तक अपने प्रयास में सफल रहे। मराठी जैन साहित्य में काव्य-गुणों की दृष्टि से इनकी रचना काफी ऊँचे स्तर की है। भीमचन्द्र , . . इनकी एकमात्र उपलब्ध रचना गुरु-आरती में ६ कडवक हैं। कारंजा के भट्टारक देवेन्द्र कीर्ति की प्रशंसा इस आरती में की गई है । भीमचन्द्र के हाथ की संवत् १८३७ ( सन् १७८० ) की लिखी एक पोथी उपलब्ध है, इसी के आसपास इनका समय समझना चाहिए । राघव इन्होंने कारंजा के भट्टारक सिद्धसेन की स्तुति लिखी है। इसमें ६ पद्य हैं। इनकी दूसरी रचना सेटिमाहात्म्य में ११ कडवक हैं। नागपुर के . . १. प्रा० म०, पृष्ठ ११२। २. प्रा० म०, पृष्ठ ९३ । ३. प्र..जिनदास चवडे, वर्धा, १९०४।। ४. प्रा० म०, पृष्ठ ९६ ,.. ५. इसका कुछ अंश हमारे 'भटारक संप्रदाय' (पृष्ठ २७) में प्रकाशितः है (जीवराज ग्रंथमाला, शोलापुर १९५८)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002100
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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