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________________ प्रारंभिक एवं मध्ययुगीन मराठी जैन साहित्य २२९ भोसले-राजदरबार में सम्मानित सेठ वरधासाहजी ने सन् १७८८ में एक जिनमन्दिर का निर्माण किया था। इस अवसर पर उनकी प्रशंसा में कवि ने यह सेटिमाहात्म्य लिखा था । राघव की तीसरी रचना मुक्तागिरि-पार्श्वनाथ आरती में १७ कडवक हैं ।२ गुणकीर्तिकृत धर्मामृत के कुछ परिच्छेदों का पद्यमय रूपान्तर कर राघव ने पंचनमस्कारस्तुति और आदिनाय पंचकल्या‘णिक स्तुति इन दो कविताओं की रचना की थी। जिनस्तुति, गुरुस्तुति और वैराग्य उपदेश के विषय में इनके २५ स्फुट पद भी उपलब्ध हैं। इन्होंने अपना नाम रघु और राघव लिखा है। इनकी कविताओं में सिद्धसेन के अतिरिक्त महतिसागर, पद्मकीति, विशालकीति, लक्ष्मीसेन आदि समकालीन धर्माचार्यों के आदरपूर्ण उल्लेख हैं। . .: कवीन्द्रसेवक इनकी रचनाओं की एक हस्तलिखित प्रति सन् १८०९ में लिखी हुई मिली है, अतः इनका समय इससे पहले का है किन्तु कितना पहले है, यह मालूम नहीं हो सका। इनकी मुख्य रचना सुमतिप्रकाश में २३७२ ओवी हैं । दिल्ली-दरबार में बाद में विजय प्राप्त करनेवाले जैन आचार्यों की कथा इसमें वर्णित है।" इनके ५४५ अभंग५ भी उपलब्ध हैं। इन स्फुट रचनाओं में जिनस्तुति, तीर्थवन्दना, गुरुस्तुति, धर्मोपदेश, दांभिक व्यवहार की आलोचना आदि विविध विषयों का भावपूर्ण वर्णन है। . १. युगवाणी मासिक, नागपुर, अगस्त १९५८ में प्रकाशित, सं० वि० जोहरापुरकर । २. हमारे तीर्थवन्दनसंग्रह (पृ० १०५) में प्रकाशित (जीवराज ग्रन्थमाला, शोलापुर, सन् १९६५)। ___ ३. सन्मति, सितम्बर १९६३ में हमने इनका कुछ अंश प्रकाशित किया है। ४. प्रा० म०, पृष्ठ १११। ५. यह ओवी के समान मराठी में बहुप्रचलित छंद है, इसमें दो-दो या चार-चार पंक्तियों के कुछ पद्य होते हैं, दो-दो पंक्तियों के पद्यों में अन्त्ययमक का प्रयोग होता है, चार पंक्तियों के पद्यों में प्रायः दूसरी और तीसरी पंक्ति में अन्त्ययमक होता है। 'कवीन्द्रसेवकाचे अभंग' यह लगभग २०० अभंगों का संकलन श्री हीराचन्द दोशी, शोलापुर, ने १९२२ में प्रकाशित किया था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002100
Book TitleJain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 7
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmbalal P Shah
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1981
Total Pages284
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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