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प्रारंभिक एवं मध्ययुगीन मराठी जैन साहित्य
न्याहाल
ये भी शान्तिसेन के शिष्य थे । गुरु की प्रशंसा में ७ पद्यों की एक आरती इन्होंने लिखी थी । "
रतन
कारंजा के भट्टारक सिद्ध
इनकी चार छोटी रचनाएं उपलब्ध हैं । २ सेन की आरती में १० पद्य हैं । यह संवत् १८२६ ( सन् १७०० ) में लिखी गई थी। जिनेश्वर आरती में ५, नेमिनाथ आरती में ६ तथा अंतरिक्ष पार्श्वनाथ आरती में ४ पद्य हैं । हिन्दी में रामटेक शांतिनाथ विनती तथा चौबीस तीर्थकर आरती ये दो रचनाएँ भी प्राप्त हैं ।
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दिनासा
ये बघेरवाल जाति के थे। इनकी दो छोटी रचनाएँ प्राप्त हुई हैं । शक १६९२ (सन् १७७० ) में रचित बारामासी में १३ पद्य हैं । नेमिनाथ को - मुनिदीक्षा से व्यथित राजमती के विरहोद्गार इसमें वर्णित हैं । दूसरी रचना ६ कवकों का एक पद है जो वैराग्य की प्रेरणा देता है 1
वृषभ
ये कारंजा के भट्टारक धर्मचन्द्र के शिष्य थे । मराठी में इनके दो स्तोत्र प्राप्त हैं | चन्द्रप्रभ और पद्मावती के इन स्तोत्रों में नौ-नी श्लोक हैं। हिन्दी में रविव्रतकथा ( दो संस्करण) एवं नववाडी तथा संस्कृत में निर्दोष सप्तमीव्रतोद्यापन ये वृषभ की अन्य रचनाएं हैं जिनसे उनका समय सन् १७७२-७७ के आसपास निश्चित होता है ।
देवेन्द्रको ति शिष्य
जयसिंगनगर में शक १६९३ ( सन् १७७२ ) में हुए पद्मावतीदेवी के
१-२. ये रचनाएँ हमारे हस्तलिखित संग्रह में हैं। इनमें से सिद्धसेन आरती का कुछ अंश हमारे 'भट्टारक संप्रदाय' ( जीवराज ग्रन्थमाला, शोलापुर, १९५८ ) में प्रकाशित है (पृष्ठ २३) ।
३. प्रा० म०, पृष्ठ ९१। सुषमा मालिक, नागपुर, अप्रैल १९६० में बारामासी प्रकाशित हुई है, सं० सुभाषचन्द्र अक्कोले ।
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४. गोपाळ गंगासा राऊळ, कारंजा द्वारा प्रकाशित अष्टकपूजा संग्रह में ये स्तोत्र छपे थे । प्रकाशनवर्ष मालूम नहीं हो सका ।
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